व्यवहार दर्शन* (Raw)
by A Nagraj
श्र अखण्ड सामाजिकता का अध्ययन मानवीय स्वभाव, विषय एवं दृष्टि के आधार पर ही है, जिसके संरक्षण हेतु सामाजिक व्यवस्था है ।
श्र उपरिवर्णित आधार पर अध्ययन करने पर मानव प्रवृत्तियों की कुल तीन प्रकार से गणना होती है :-
1. अमानवीयता 2. मानवीयता 3. अतिमानवीयता ।
:: अमानवीय स्वभाव, विषय एवं दृष्टि का संरक्षण, संवर्धन एवं प्रोत्साहन देने हेतु की गई व्यवस्था अमानवीय अथवा पाशविक प्रवृत्ति व्यवस्था है ।
:: अमानवीय स्वभाव :- दीनता, हीनता एवम् क्रूरता ही अमानवीय स्वभाव है ।
:: अमानवीय विषय :- आहार, निद्रा, भय एवम् मैथुन ही अमानवीय विषय है ।
:: अमानवीय दृष्टि :- प्रियाप्रिय, हिताहित एवम् लाभालाभ ही अमानवीय दृष्टि है ।
:: प्रिय :- ऐन्द्रिय सुख सापेक्ष क्रिया की प्रिय संज्ञा है ।
:: हित :- शरीर स्वास्थ्य वर्धन एवं पोषण क्रिया की हित संज्ञा है ।
:: लाभ :- श्रम से अधिक द्रव्य पाने की क्रिया को लाभ अथवा लघु मूल्य के बदले गुरु मूल्य आदाय ही लाभ है ।
:: दीनता :- अपने दु:ख को दूसरों से दूर कराने हेतु जो आश्रय प्रवृत्ति है, उसकी दीनता संज्ञा है ।
★ दीनता अभावजन्य या अक्षमताजन्य दो प्रकार की होती है ।
:: अभाव :- उत्पादन से अधिक उपभोग एवं उपयोग की इच्छा ही अभाव है । आलस्य, प्रमाद, अज्ञान, अप्राप्ति, प्राकृतिक प्रकोप तथा सामाजिक असहयोग अभाव के कारण हैं ।
:: अक्षमता :- इच्छानुसार बौद्धिक एवं कार्य-व्यवहार क्रिया का संपादन न कर पाना ही अक्षमता है । अक्षमता का कारण अजागृति और रोग है ।
:: हीनता :- विश्वासघात ही हीनता है ।
:: विश्वासघात :- जिससे जिस क्रिया की अपेक्षा है, उसके विपरीत आचरण किया जाना ही विश्वासघात है ।
:: छल :- विश्वासघात के अनन्तर भी उसका भास या प्रकट न हो ऐसे विश्वासघात की छल संज्ञा है ।
:: कपट :- विश्वासघात के अनन्तर उसके प्रकट या स्पष्ट हो जाने की स्थिति में विश्वासघात की कपट संज्ञा है ।