व्यवहार दर्शन* (Raw)

by A Nagraj

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श्र भ्रान्त अवस्था में प्रधानतः छः प्रकार के आवेशों को पाया जाता है, वे हैं 1. काम, 2. क्रोध, 3. मद, 4. मोह, 5. लोभ और 6. मत्सर ।

श्र इन सबके मूल में आवेश है । आवेश ही मानव के लिए दुःख का कारण है ।

श्र आवेश के मूल में हठ, हठ के मूल में भ्रम और भ्रम के मूल में अहंकार है ।

:: हठ ः- अपने विचार या व्यवहार से पूर्णतः प्रभावित हो जाना हठ है ।

:: काम ः- प्रजनन या यौन संवेदना क्रिया में सुख पाने की प्रवृत्ति की काम संज्ञा है ।

:: क्रोध ः- स्वयम् की अक्षमता का प्रदर्शन ही क्रोध है ।

:: मदः- असत्यता के प्रति मान्यता की पराकाष्ठा ही मद है ।

:: मोह ः- मुग्ध हो जाना ही मोह है ।

:: लोभ ः- पात्रता से अधिक विशेष विभूति के प्रति उत्कट वांछा एवम् प्रयास ही लोभ है । सुविधा-संग्रह प्रवृत्ति होना ।

:: मत्सर ः- दूसरे के ह्रास एवम् पतन हेतु उत्कट कामना व प्रयास मत्सर है ।

श्र मन में आवेश, वृत्ति में हठ, चित्त में भ्रम तथा बुद्धि में आत्मा से विमुखता (अहंकार) ही शरीर मूलक प्रवृत्तियाँ है, और मन में मित्र-आशा, वृत्ति में विचार, चित्त में इच्छा और बुद्धि में ऋतम्भरा, आत्मा में अनुभव प्रमाण परावर्तन क्रिया है ।

श्र मन एवम् वृत्ति के मध्य में भ्रमित मनःकृत वातावरण के दबाव से दुःख तथा इसके विपरीत वृत्ति एवम् मन के मध्य में वृत्ति सहज वातावरण के प्रभाव से सुख की उपलब्धि होती है ।

श्र वृत्ति एवम् चित्त के मध्य में वृत्ति कृत वातावरण के दबाव से अशांति तथा इसके विपरीत चित्त एवम् वृत्ति के मध्य में चित्त सहज वातावरण के प्रभाव से शान्ति की उपलब्धि होती है ।

श्र चित्त एवम् बुद्धि के मध्य में चित्त कृत वातावरण से असंतोष तथा इसके विपरीत बुद्धि एवम् चित्त के मध्य बुद्धि सहज वातावरण से संतोष की उपलब्धि होती है ।

श्र बुद्धि एवम् आत्मा के मध्य में आत्मा का ही वातावरण होना पाया जाता है क्योंकि आत्मा मध्यस्थ है । यह वातावरण प्रभावपूर्ण रहता है तथा आत्माभिमुख बुद्धि सहअस्तित्व में अनुभव सहज आनन्द की अनुभूति रहना पाया जाता है ।

★ इस प्रकार यह स्पष्ट हुआ कि जागृत जीवन में मन और वृत्ति के योग से सुख, वृत्ति और चित्त के योग से शान्ति, चित्त व बुद्धि के योग से संतोष तथा बुद्धि और आत्मा के योग से आनन्द की अनुभूति होती है । यही जागृति है ।