व्यवहार दर्शन* (Raw)
by A Nagraj
ज्ञ जड़ पक्ष पर जागृत मानव सहअस्तित्व सहज संतुलन को बनाये रखने के लिए नियन्त्रण करने का अधिकार सम्पन्न रहता है । इसी नियंत्रण (ज्ञान) सहअस्तित्व में अनुभव सहज क्षमता, योग्यता तथा पात्रता पूर्ण होने पर चैतन्य पक्ष की जागृति प्रमाणित होती है, अन्यथा में उसके द्वारा ह्रास की स्वीकृति ही है ।
ज्ञ नियंत्रण (ज्ञान या व्यापकता) की अनुभूति के लिये विचार पक्ष की संयमता, विचार पक्ष की संयमता के लिये चित्त शक्ति का प्रत्यावर्तन, ऐसे प्रत्यावर्तन के लिये दृढ़ता तथा निष्ठा, और दृढ़ता तथा निष्ठा के लिये जड़, चैतन्य व व्यापक का निर्भ्रम ज्ञान आवश्यक है ।
ज्ञ नीचे संक्षेप में जड़, चैतन्य तथा व्यापक सत्ता के बारे में मूल निर्देशक तत्व दिये गये हैं -
श्र 1. जड़ मरण धर्मा, चैतन्य अमरत्वधर्मा तथा व्यापक नित्य-धर्मा है ।
श्र 2. अनेक परमाणुओं से गठित पिण्ड या अनेक परमाणुओं से गठित अवस्था की ‘स्थूल’ संज्ञा है ।
श्र 3. परमाणु की ‘सूक्ष्म’ संज्ञा है ।
श्र 4. आत्मा की ‘कारण’ संज्ञा है ।
श्र 5. व्यापक की ‘महाकारण’ संज्ञा है ।
★ निरपेक्ष ऊर्जा सर्वत्र (व्यापक) होने के कारण सर्वदा सबको प्राप्त है । नित्य सहअस्तित्व के कारण ः-
श्र पदार्थावस्था की इकाईयाँ इसे पाकर सक्रिय ।
श्र प्राणावस्था की इकाईयाँ इसमें होने के कारण स्पन्दित ।
श्र जीवावस्था की इकाईयाँ इसमें होने के कारण आशान्वित है ।
श्र ज्ञानावस्था की इकाईयाँ इसमें होने के कारण आशान्वित और संज्ञानित हैं ।
★ उत्तरोत्तर विकसित इकाई में निम्नस्तरीय इकाईयों के गुण विलय रहते ही हैं ।
श्र ज्ञान का उद्घाटन चैतन्य पक्ष अथवा विचारों द्वारा ही होता है ।
श्र विचार पक्ष संस्कारों के आधार पर ह्रास और जागृति की ओर गतित है ।
श्र दूसरों के कष्ट, दुःख, वेदना एवम् संकट के प्रति मानव में संवेदना होती ही है, जो ज्ञानानुभूति की सक्षमता अथवा संभावना के कारण है ।