भौतिकवाद
by A Nagraj
फलस्वरुप नस्ल के आधार पर समुदाय चेतना अर्थात् अपना पराया वाली सीमाएँ बनती रही।
दूसरी बार भिन्न-भिन्न रंगों के मानव देखने को मिले। उसी के आधार पर एक दूसरे को मारकाट करने वाले मानकर झगड़़ा कर लिया। फलस्वरुप परिवारों में अथवा समुदायों में भिन्न-भिन्न रंग और नस्ल की दीवालें पनपती आई। इस प्रकार ये दोनों (रंग और नस्ल) मान्यताएँ परंपरा में कटुता, द्रोह, विद्रोह प्रवृति को पनपाती रही।
तीसरी बार पुन: मानव को पूजा, अर्चना, योग, साधना, उपासना के आधार पर पहचानने की कोशिश हुई। यह भी पूववर्ती दो प्रकार के भूलों जैसी ही हुई। मतभेद वाद-विवाद के आधार पर पहले जैसे ही द्रोह-विद्रोह होते रहे। चौथी बार पुन: वस्तु संग्रह, सुविधा और भोग के आधार पर एक दूसरे समुदायों को पहचानने की कोशिश हुई। इसमें द्रोह-विद्रोह के साथ शोषण भी प्रखरता से शामिल हो गया। युद्घ तो पहले से ही रहा। इस प्रकार मानव विविध समुदाय प्रेरणाओं से प्रेरित होकर ही एक दूसरे को नकारने-सकारने के तरीकों से समस्याओं को तौलता ही रहा। यह समुदाय चेतना का एक इतिहास है।
(2) शिला व धातु युग
दूसरा इतिहास जंगल युग के शिला युग, शिला युग से धातु युग, धातु युग से दास युग (आदर्शवादी विचार) तथा दास युग से संघर्ष युग जो आज वर्तमान है।
शिला और जंगल में मानव प्राकृतिक प्रकोप और क्रूर जानवरों से प्रधान रूप से भयभीत ही रहा। जैसे ही कबीला एवं ग्राम युग आया वैसे ही एक समुदाय दूसरे समुदाय से भयभीत होते रहा। जैसे ही दास युग आया वैसे ही ईश्वर, राजा और गुरु के प्रति नतमस्तक होने की पंरपरा चली। राजा से प्रजा को सुख चैन का आश्वासन मिलते रहा। धर्म ग्रंथों, दर्शनों एवं विचारों के आधार पर पाप, अज्ञान, स्वार्थ से मुक्त होने के आश्वासन के आधार पर दास युग को स्वीकारा गया । इसके बावजूद द्रोह-विद्रोह-युद्घ कहीं नहीं रुका।