भौतिकवाद
by A Nagraj
कितना भी सूक्ष्म अध्ययन करें, वह सारा अध्ययन शरीर रचना के ही संबंध में हो पाएगा। शरीर रचना मानव परंपरा में, अपने ही स्वरुप में संपन्न हो ही रहा है। शरीर का संपूर्ण उपयोग जीवन की अभिव्यक्ति, जागृति का प्रमाणीकरण के लिए (माध्यम) है। मानव परंपरा में इसकी आवश्यकता है। अस्तु, मानव का इतिहास आदि मानव से होना सहज है।
“नित्यम् यातु शुभोदयम्”
अध्याय - 2
मानव स्वरूप का इतिहास
(1) सामुदायिक इतिहास
उक्त प्रकार से आदि मानव ने एक स्थान अथवा देश में शरीर यात्रा प्रांरभ किया, या एक से अधिक देश अथवा स्थान में आरंभ किया - यह प्रश्न मानव को सोचने के लिए बाध्य करता हैं। इसका सत्य सहज उत्तर है कि आदिकाल में एक परिवार ने दूसरे परिवार को नस्ल के आधार पर पहचाना। यही पहली और ऐतिहासिक भूल या घटना हुई। आज हमें यह ज्ञात है कि नस्ल का आधार भौगोलिक, नैसर्गिक परिस्थितियाँ है। रंग का आधार भी भौगोलिक, नैसर्गिक परिस्थितियाँ है। पूजा व प्रार्थनाएँ कल्पनाशीलता के आधार पर निर्मित हुई। साधना का आधार श्रेष्ठता की अपेक्षा निष्ठा पर रहा। धर्म कहलाने वाले सभी प्रक्रियाएँ सामुदायिक शासन नियंत्रण और आश्वासन पर निर्भर रहीं। इसके लिए आज यही सोचा जा सकता है कि मानव की जागृति मानव के संबंध में नस्ल तक ही रही है। इसका प्रकाशन लड़ाई के रूप में हुआ। अर्थात् एक परिवार दूसरे परिवार को नस्ल, रंग के आधार पर क्रूर जीव-जंतु मानकर लड़ लिया।