भौतिकवाद
by A Nagraj
अधिक समुदायों में स्थापित संविधान व्यवस्था और संस्कार सभी समुदायों के लिए स्वीकृत नहीं हो पाया। सभी समुदायों में मानव विचारशील रहे हैं। समीचीन ज्ञान विज्ञान के अनुरुप अभय और शांति सबको सुलभ होने के उद्देश्य से ही सभी संविधानों की स्थापना हुई है। प्रत्येक समुदाय अपने संविधान के अनुरुप शिक्षा, संस्कार, राज्य और धर्म व्यवस्था पाने की आशा और आकांक्षा से इसमें अर्पित होते आया है। आज भी ऐसी ही स्थितियाँ देखने को मिलती हैं। इस प्रकार सभी समुदायों में संविधान, शिक्षा संस्कार, व्यवस्था संबंधी तथ्यों को सोचते हुए समुदाय चेतना से विवश होकर समस्त कार्य किए गए। फलत: वाद-विवाद व द्रोह-विद्रोह की संभावनाएँ आदिकाल से अभी तक बनी हुई है। यह समस्या विश्व मानव के सम्मुख स्पष्ट है अर्थात् समुदायों के सम्मुख स्पष्ट है।
उक्त समस्या के कारण तत्वों का निरीक्षण परीक्षण किया गया। इसका उत्तर यही मिला कि मानव ने मूलत: मानव को पहचानने में सहअस्तित्व रूपी परम सत्य को समझने में ही भूल किया है।
इस पृथ्वी पर सर्वप्रथम मानव के अवतरण समय को जंगल युग अथवा शिलायुग का नाम दिया गया है। सर्वप्रथम एक से अधिक मानव अवतरित हुए ऐसा माना गया है। इसका कारण मानव की कल्पनाशीलता के अनुसार एक से अधिक नर-नारी होने से ही मानव परंपरा में प्रजनन कार्य संभव है। इस क्रम में सर्वप्रथम इस धरती पर एक से अधिक मानव अवतरित हो गए। सबसे पहले किस प्रकार से मानव का अवतरण संभव हुआ इस बात के लिए तमाम कल्पनाएँ होती हैं। किसी का सोचना बंदर, किसी का सोचना भालू, किसी का सोचना मछली, किसी का सोचना गाय। ये सब कल्पनाएँ की जा सकती है। यह सहज रूप में पाया गया है कि वनस्पतियों में अनेक बीज परंपराएँ, किसी एक परंपरा के बाद ही स्थापित हुई है, और जीवों में किसी एक वंश परंपरा के अनन्तर ही अनेक वंश परंपराएँ स्थापित हुई है।
इस क्रम में वंश सूत्र का परंपरा में ही होने वाले अनुसंधान अर्थात् अनुकूल परिस्थितियों का उन्नतोन्नत रूप में व्यक्त करने के क्रम में किया गया सहज प्रयास ही है। इसी क्रम में मानव प्रजाति का अवतरण कोई भी जीव योनि मूलक विधि से मानव का होना संभव है। जिसमें समृद्घ मेधस रचना का प्रावधान परंपरा में रहते आया हो। इस मुद्दे पर