भौतिकवाद
by A Nagraj
मिलता है। जैसे:- हाथी, घोड़ा, कुत्ता, बिल्ली, भेड़ अपने अपने वंशानुषंगीय शरीर रचना और प्रवृति जो जीवन का वैभव है, से युक्त होते है। इनके अर्थात् शरीर और जीवन के संयोग से संपूर्ण प्रजाति के पशुओं का संतुलन और नियंत्रण होना पाया जाता है। इनमें संतुलन का आधार पहचानने के क्रम में पशु अर्थात् जीव जातियों का मांसाहारी और शाकाहारी होना पाया गया है।
पदार्थ, प्राण, जीव इन तीनों अवस्थाओं में परस्पर पूरकता सिद्घांत प्रभावशील रहता ही है। जैसे पदार्थावस्था प्राणावस्था के लिए प्राणावस्था पदार्थावस्था के लिए पूरक है- यह स्पष्ट है। ये दोनों अवस्थाएँ जीवावस्था के लिए पूरक हैं। जीवावस्था भी प्राणावस्था और पदार्थावस्था के लिए पूरक है यह प्रमाणित है। जैसे- संपूर्ण जीव पूरक होने के क्रम में पदार्थावस्था को अपने मल, मूत्र और शरीर के उपयोग से और वनस्पतियों में होने वाले अनेक संक्रामक और आक्रामक रोगों को अपने मल, मूत्र, श्वास एवं शरीर गंध से दूर करने में सहायक हुए हैं। जीवों का मल, मूत्र और श्वसन क्रिया महत्वपूर्ण भूमिका निभाता हुआ देखने को मिलता है। इस प्रकार इन तीनों अवस्थाओं का परस्पर पूरक होना, देखने को बन पाता है।
मानव ज्ञानावस्था की इकाई होते हुए इस बीसवीं शताब्दी के दसवीं दशक तक मनुष्येत्तर प्रकृति के साथ पूरक होने के स्थान पर इन्हें सर्वाधिक क्षतिग्रस्त करने में लगा ही रहता है। इतना ही नहीं, मानव मानव के साथ विद्रोहात्मक - द्रोहात्मक, शोषणात्मक और युद्घात्मक विधियों को अपनाता हुआ स्वयं क्षतिग्रस्त होते हुए अनेकों को क्षतिग्रस्त करने - कराने में लगा रहता है। यह सुदूर विगत से आयी समस्याओं का निचोड़ है। इन समस्याओं का समाधान भौतिक-रासायनिक वस्तुओं तथा जीवन, अनंत इकाई रुपी वस्तुओं और व्यापक के अविभाज्य अध्ययन से संभव है। इससे समाधानात्मक अवधारणाएँ मानव सुलभ होती हैं।
ऊपर की बातों में मानव के अतिरिक्त तीनों अवस्थाओं के अध्ययन की झलक आयी है। उसके अनुसार और वर्तमान में यही देखने को मिलता है कि “अस्तित्व में प्रत्येक एक अपने त्व सहित व्यवस्था है और समग्र व्यवस्था में भागीदार है।” इसके प्रमाणों को पूरक विधि से पदार्थावस्था, प्राणावस्था जीवावस्था में वर्तमान होना स्पष्ट किया गया। इसी क्रम में मानव में, से, के लिए भी व्यवस्था अपेक्षित है।