भौतिकवाद
by A Nagraj
इसके उपरान्त जैसे ही भौतिकवादी युग विज्ञान और तकनीकी पूर्वक यंत्र प्रमाण सहित आया वैसे ही संघर्ष युग का लोकव्यापीकरण होना आरंभ हुआ। इस युग की मूलभूत बात - “सुविधा, संग्रह और भोग” है। फलस्वरुप पहले ग्राम-कबीले में मानव में निहित अमानवीयता का भय जितना रहा उससे कहीं अधिक दास युग में रहा। आज संघर्ष युग में मानव में निहित अमानवीयता का भय सर्वाधिक हो गया है। इसी के साथ प्राकृतिक भय और जीव भय इस युग में अन्य युगों की अपेक्षा कम हुआ है।
(3) वैचारिक इतिहास
इतिहास का तीसरा चरण विचारधाराओं से शुरु होता है। यही अभी तक के प्राप्त विचारों के अनुसार ईश्वरवादी विचार है, जो प्रकारान्तर से तीन स्वरुप में मानव के सम्मुख है :-
1. अध्यात्मवाद
2. अधिदैवीवाद
3. अधिभौतिकवाद।
इन तीनों वादों को सम्मिलित रूप में आदर्शवाद नाम दिया गया है। आदर्शवाद का मूल प्रतिपादन रहस्यमूलक ईश्वर केन्द्रित चिंतन है। आदर्शवाद के अंतर्गत ऐसी रहस्यमयता को ज्ञान माना जाता है। अध्यात्मवाद वाले अध्यात्म ज्ञान को परम मानते हैं। अधिदैवीवाद वाले अधिदैवी ज्ञान को परम मानते है, जबकि ये सभी रहस्य हैं। इन तीनों वादों के अनुसार ज्ञान को चेतना, व्यापक और सत्य बताया गया है। मूलत: ईश्वर का प्रतिपादन अथवा सत्य का प्रतिपादन रहस्य पर आधारित होने के कारण ईश्वर भी, सत्य भी, ज्ञान भी रहस्यमय रह गया।
मानव में अज्ञात को ज्ञात करने की इच्छा बनी ही रही है। फलत: इन मुद्दों पर जितने भी वांङ्गमय तैयार हुए वे सब वाद विवाद के चंगुल में फंसते गए। इसमें प्रमुख बात यह रही है कि अनेकानेक प्रबुद्घ ईमानदार लोग सच्ची साधना में समर्पित हुए। साधनाओं की विविधता बढ़ती रही। अत: मतभेद का अनेकानेक रूप में प्रचारित होना और प्रतिबद्घित होना, देखने को मिला। इन सबके अथक प्रयास के बावजूद मूल मुद्दा रहस्य ही रहते आया। ईश्वर के नाम से रहस्यमय महिमाओं का कथन हुआ। “ईश्वर को रिझाना ही मानव जीव का कल्याणकारी मार्ग है”- ऐसा बताया गया। इस कथन के साथ