भौतिकवाद
by A Nagraj
1. कपड़ो और अंलकारों की सजावट का विस्तार और उसके तरीके,
2. शादी-ब्याह के रीति रिवाज,
3. संतान, अन्न व वस्तुओं की प्राप्ति के साथ उत्सव मनाने का तौर तरीका,
4. कोई मर गया तो शोक संवेदनाओं को व्यक्त करने का तौर तरीका,
5. नृत्य, गीत-संगीत घर-द्वार की सजावट व स्वागत का तरीका।
प्रधानत: भक्ति और श्रृंगारिक प्रकृति सहज महिमाओं को आधार बनाकर व्यक्त किये हुए गीत, कविता, साहित्य, मूर्ति एवं चित्रों को संस्कृतियों का रूप मानते हुए समीक्षा करने पर शिलायुग से धातु युग, धातु युग से कबीला युग, कबीला युग से दास युग, दास युग से संघर्ष युग की संस्कृतियाँ, बेहतर से बेहतरीन मानी जा रही है।
(5) आर्थिक इतिहास
आर्थिक इतिहास का आधार मानव परंपरा में एक आयाम हैं। इसे ऐसा भी कह सकते है कि अर्थ परंपरा में मानव कितना डूबते रहा और तैरते रहा। तीसरी विधि से ऐसा भी देख सकते है कि अर्थ के प्रति मानव कितना जागृत रहा या भ्रमित रहा।
सबसे पहले जंगल में (आदिकाल में) जंगल को ही अर्थ मानता रहा। इसकी गवाही यही है कि आदि मानव जंगल में रहने तथा जंगल को खाने की वस्तुओं के रूप में पहचानते रहे है, चाहे शाकाहार करते रहे हों या मांसाहार। शिलायुग आने के उपरान्त शिला और जंगल को उपयोगी वस्तु के रूप में पहचाना। मानव के लिए उपयोगिता का स्वरुप आहार, आवास रहा ही है और अलंकार क्रम में उपयोगिता को पहचानना स्वाभाविक रहा है। जंगल युग की अलंकार प्रणाली से शिलायुग में परिवर्तन हुआ। धातु युग में और परिवर्तन हुआ। यही तीन उपयोगिता का आधार आवश्यकता के रूप में होते आया।
सम्मान योग्य व्यक्ति की पहचान जंगल युग से ही प्रारंभ हुई। क्योंकि जंगल में रहते हुए वन्य प्राणियों से जूझना एक अनिवार्य स्थिति रही। इस कारण वंश या परिवार में से अथवा समुदाय में से जो व्यक्ति क्रूर प्राणियों की हत्या कर पाया ऐसे व्यक्तियों का समुदाय या परिवार ने सम्मान किया। जैसे-जैसे आवास, अलंकार और आहार संबंधी वस्तुओं को इकट्ठा करने की बात आई, इसके लिए विविध प्रकार के उपायों को सोचा गया तथा उसे क्रियान्वित किया गया। इस क्रम में जब मानव प्रवृत्त हुआ तो इनमें से