भौतिकवाद

by A Nagraj

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शरीर का जीवित रहना माना जाता है। इन क्रियाओं का अध्ययन प्रत्येक मानव में निरीक्षण-परीक्षण पूर्वक किया जा सकता है। इन दस क्रियाओं में, से कुछ क्रियाएँ व्यवहार में प्रमाणित रहती है। कुछ क्रियाएँ प्रमाणित नहीं रह पा रही हैं, यही मूलत: जीवन सहज अतृप्ति और समस्या है। फलत: अव्यवस्था ही हाथ लगती है। इसलिए अभी वर्तमान में कितनी क्रियाएँ व्यवहार में प्रमाणित होती है और व्यवहार में कितनी प्रमाणित नहीं हो पा रही है, इसका परिशीलन हम कर सकते हैं। और जितनी क्रियाएँ व्यवहार में प्रमाणित नहीं हो पा रही हैं उसको पहचान सकते हैं। इसके निराकरण के लिए उचित उपायों को प्राप्त कर सकते हैं। क्योंकि प्रत्येक मानव में जीवन सहज कल्पनाशीलता-कर्म स्वतंत्रता नित्य प्रभावी है। इसी आधार पर उपायों को खोजना प्रत्येक मानव में, से, के लिए सहज संभव है। प्रत्येक मानव जागृति पूर्वक जीवन सहज दस क्रियाकलापों को स्वयं में, स्वयं से, स्वयं के लिए पहचान सकता है और परस्परता में प्राप्त मानव को भी अध्ययन कर सकता है। परस्परता में प्राप्त मानव, स्वाभाविक रूप में प्राप्त परस्परता के साथ व्यवहार करता ही है। व्यवहार में जीवन की वे क्रियाएँ जो जागृत हो चुकी हैं - यही प्रकाशित, संप्रेषित, अभिव्यक्त हो रही है। अन्य क्रियाएँ अर्थात् शेष क्रियाएँ जो जागृत नहीं है वे प्रकाशित नहीं होती।

दस क्रियाएँ जो ऊपर बताई गई है, वे जीवन सहज संपूर्ण क्रियाएँ हैं। ये सभी क्रियाएँ अविभाज्य है। अविभाज्यता का तात्पर्य एक दूसरे से अलग न होने से हैं। इससे यह भी स्पष्ट होता है कि जीवन अपनी संपूर्णता में वैभव है और जीवन का भाग-विभाग नहीं होता। किसी भी दबाव, कितने भी दबाव और विखण्डन विधियों से जीवन को भाग-विभाग नहीं किया जा सकता, क्योंकि दबाव और भाग-विभाग की जो कुछ भी परिकल्पना है वह मानव में ही सर्वाधिक रूप से प्रकाशित होती दिखाई पड़ती है। इसका तात्पर्य यही हुआ कि मानव जीवन को भाग-विभाग में अर्थात् विखंडन और दबाव से कुछ करना चाह सकता है किन्तु कर नहीं पायेगा क्योंकि कल्पनाशीलता में बहुत सारी ऐसी चीजों की कल्पना की जा सकती हैं। इसको मानव देखता है पानी बहता है, इसलिए मिट्टी भी बहेगी, पत्थर भी बहेगा ऐसी कल्पना कर सकते है जबकि ऐसा होता नहीं। इससे यह भी स्पष्ट हुआ कि उदाहरणों के आधार पर और अधिक स्पष्ट रूप में जिसकी यथार्थता को अध्ययन करना है, उससे भिन्न वस्तु का उदाहरण देकर उस वस्तु का अध्ययन करना संभव नहीं है। जिसको हम उदाहरण से अध्ययन करना चाहते है जैसे