भौतिकवाद
by A Nagraj
अध्ययन संपन्न कराते हैं। सच यही है कि मानव की कल्पनाशीलता, कर्म स्वतंत्रता के संयोग से ही घटनाओं को पहचाना जा सकता है और घटनाओं को घटित किया जा सकता है। इसी क्रम में चुम्बकीय विद्युत घटना को मानव ने पहचाना है और उसको घटित किया है। इस प्रकार आज भी यह प्रमाणित है, पहले भी था और सभी दिन ऐसे ही रहेगा।
वैज्ञानिक इतिहास के अनुसार भी इस बात को स्वीकारा गया है कि किसी निश्चित व्यक्ति, किसी घटना को उसके लिए समुचित उपक्रम (क्रिया प्रक्रिया) सहित घटना की रुपरेखा को विधिवत् अध्ययन गम्य कराया जाता है। इसके बावजूद इस बात को भुलावा देते है कि मानव की ही कल्पनाशीलता, कर्म स्वतंत्रता की यह देन है, वैभव है। इसके कारण में जाने पर पता लगता है कि पहली बार किसी घटना को घटित करने के लिए जो आदमी कारक और प्रेरक हुआ, उसके लिए दूसरे नहीं हो सकते थे। दूसरा, मानव सहज वैभव के अनुसार कोई भी घटना पहचानने में आई और घटना को मानव ने घटित कराया। मानव ने संपूर्ण उपक्रमों को अध्ययनगम्य करा दिया। उस ज्ञान का व्यापार करने के लिए तैयार हो गया। इन्हीं दो कारणों से ऊपर बताई परंपरा, किस तरह गुमराह हो इस तरीके को खोज लिया मानव ने। इस तरीके से आज तकनीकी विज्ञान का व्यापार प्रचलित हुआ। इससे मानव परंपरा क्षतिग्रस्त हुई। इस प्रकार देख सकते हैं कि:-
1. यदि एक मनुष्य अनुसंधानित वस्तु को अध्ययन कर मूल व्यक्ति के सदृश्य नहीं हो सकता है, तो यह स्वयं के प्रति विश्वासघात का आधार हुआ।
2. मनुष्य स्वयं अपने साथ विश्वासघात कर लेता है (वातावरण में, नैसर्गिकता के साथ विश्वासघात करते ही आया है। इसका प्रमाण है, नैसर्गिकता, वातावरण में असंतुलन बढ़ते आया) जैसे मानव - मानव के बीच अविश्वास, द्रोह, विद्रोह गहराना, शोषण प्रवृति, संग्रह रुपी प्रलोभन का बढ़ना, परस्पर समुदायों के बीच शोषण, युद्घ, द्रोह, विद्रोह ही राजनीति का आधार होना- ये सब गवाहियाँ है।
इससे कोई बेहतरीन समाज रचना अभी तक नहीं हो पाई और न ही इस विधि से हो पायेगी। इसका सिद्घांत यही है कि गलतियाँ कितनी ही बार दुहराई जायें उससे कोई सही उत्तर नहीं निकलता। सकारात्मक विधि से हर सही कार्य को कितनी ही बार दुहरायें