भौतिकवाद
by A Nagraj
ऊपर एक उदाहरण और अध्ययन की बात बताई गई। इसमें पत्थर को, मिट्टी को उन-उनके आचरण के अनुसार अध्ययन करना होगा न कि पानी के आचरण के अनुसार। इस प्रकार हमें यह भी समझ में आता है कि अध्ययन का आधार उनका आचरण ही है।
उक्त तथ्य को ध्यान में रखते हुए हम देखें कि भ्रम में मानव ने अध्ययन का जो तरीका अत्याधुनिक माना है, वह कितना बेतुका है। वह तरीका है- मानव को अध्ययन करना है तो मानव को काटकर देखो, एक झाड़ का अध्ययन करना है तो झाड़ को काटकर देखो; एक अणु का अध्ययन करना है तो अणु को काटो; एक परमाणु का अध्ययन करना है तो एक परमाणु को काटो। इस अध्ययन विधि में खण्ड-विखण्ड अथवा क्षत-विक्षत करने के लिए दबाव विधि को अधिक कारगर माना गया है- जैसे “चुम्बकीय बल का दबाव डालने से परमाणु में आवेश पैदा होना”- फलस्वरुप सभी अंशों का अलग-अलग हो जाना पाया जाता है। परमाणु ही सबसे अधिक सूक्ष्म है, इस कारण परमाणु में ही मूल व्यवस्था समाहित है, इस कारण दबाव विधि से ही आवेश और विखण्डन पाया गया। इसमें मूलत: “शक्ति किसकी लगी और क्या लगी”- यह खोजने पर उत्तर मिलता है कि “विदेशी शक्ति अर्थात् परमाणु से भिन्न चुम्बकीय विद्युत शक्ति व बल लगा”- इसकी संप्रेषणा हुई। इसीलिए परमाणु में जो विकार पैदा होना था, वह हुआ। इसी से यह पता चलता है कि अत्याधुनिक अध्ययन विधि में किसी वस्तु को विकृत बनाये बिना अध्ययन नहीं होता-यह माना जाता है।
इसके साथ ही एक प्रश्न हम और लगा सकते थे कि “यह शक्ति किसकी थी?” इसका परिशीलन करने पर हम यह पाते है कि मानव की कल्पनाशीलता और कर्म स्वतंत्रता रुपी शक्ति और बल इसमें लगा। इसके सहज संबंध को हम देख सकते हैं। मानव की कर्म स्वतंत्रता, कल्पनाशीलता वश ही पहचानने-निर्वाह करने का कार्य प्रत्येक मानव से संपादित होता है। कल्पनाशीलता, कर्म स्वतंत्रता के फलस्वरुप ही प्राकृतिक घटना विद्युत को पहचान लिया गया। इसे गति के रूप में देखा गया। इसके मूल में विद्युत का होना मान लिया गया या उसके पहले की घटनाओं से चुम्बकीय तत्वों को पहचान चुके थे। फलस्वरुप चुम्बकीय क्रियाकलापों में मानव में अध्ययन परंपरा बनी। इस अध्ययन परंपरा में मानव की कल्पनाशीलता, कर्म स्वतंत्रता को प्रयोग करने से ही यह चुम्बकीय विद्युत घटनाक्रम समझ में आता हैं। इस संबध को जोड़े बिना ही आज