भौतिकवाद

by A Nagraj

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1. जागृति पूर्वक ही मानव परपंरा सर्वतोमुखी समाधान पूर्वक व्यक्त होता है।

2. जागृतिपूर्ण मानव परंपरा में ही जागृति पूर्ण शिक्षा-संस्कार सर्व सुलभ होता है।

3. जागृति पूर्वक ही मानव परंपरा में न्याय और सुरक्षा सर्व सुलभ होता है।

4. जागृति सहज मानव परंपरा में उत्पादन सुलभता प्रमाणित होता है।

5. जागृतिपूर्ण मानव पंरपरा में ही आवर्तनशील अर्थ प्रणाली श्रम नियोजन, श्रम विनिमय पद्घति से विनिमय सुलभता होता है।

6. जागृति पूर्ण मानव परंपरा में ही परिवार मूलक स्वराज्य व्यवस्था दश सोपानीय विधि से सर्वसुलभ हो पाता है। ये सभी मानवों के लिए आशित (अपेक्षित), आकांक्षित और आवश्यकीय उपलब्धियाँ हैं। इसके सफल होने के मूल में मानव परंपरा है। अर्थात् मानवीयतापूर्ण शिक्षा, संस्कार, संविधान और व्यवस्था है। यह मानवीयतापूर्ण अथवा जागृतिपूर्ण पद्घति, प्रणाली और नीति से प्रमाणित होता ही है।

परंपरा में जागृति होना तभी संभव है जब परिवर्तन की बेला में सच्चाईयों के आधार पर गहराई के साथ व्यवहार में, प्रमाणों को प्रमाणित करने की निष्ठा, कम से कम एक व्यक्ति में हो। एक से अधिक व्यक्ति में प्रमाणित करने की निष्ठा होना और भी अच्छा है।

विविध प्रकार से मानव इतिहास का आज हम अवलोकन कर पा रहे है। उसमें दो स्थल ऐसे दिखाई पड़ते है जिन स्थलों में गहराई, गंभीरता एवं व्यवहार प्रमाण का संयोग हो सकता था, लेकिन ऐसा हुआ नहीं।

1. ऐसा स्थल था, जब आदर्शवाद में आदर्शवादी विचार में, आदर्शवादी व्यवस्था में, आदर्शवादी शिक्षा में, संविधान और संस्कार में लोग अर्पित होने के लिए तैयार हो गए। उस क्षण में व्यवहार प्रमाण को अपरिहार्य रूप में स्वीकार सकते थे। जबकि ऐसा नहीं हुआ, फलत: सार्वभौम व्यवस्था नहीं हो पाई।

2. ऐसी संभावना अति निकट हुई जब आदर्शवादी विचार से भौतिकवादी विचार में मानव मानस को मोड़ने का मुहूर्त आया। उस समय में भी भौतिकवादी चिंतन ने व्यवहार प्रमाण की आवश्यकता को अनदेखा कर दिया। अब समाधान युग में संक्रिमत होने का समय आ रहा है। अभी कम से कम हम सब संघर्ष से समाधान