भौतिकवाद
by A Nagraj
जीवावस्था, जीवावस्था से प्राणावस्था, प्राणावस्था से पदार्थावस्था की परस्परता में अनुबंध है। इनमें से मानव के अतिरिक्त सभी अवस्थाओं ने अपने अनुबंध को पूरकता विधि से प्रमाणित किया है। क्योंकि पदार्थावस्था के अनंतर प्राणावस्था, पदार्थावस्था प्राणावस्था के अनंतर जीवावस्था, पदार्थावस्था प्राणावस्था जीवावस्था के अनंतर ज्ञानावस्था का प्रार्दुभाव, प्रकाशन इस धरती पर हुआ है। इस धरती पर मानव की समझ में यह भी आता है कि जीवावस्था, प्राणावस्था और पदार्थावस्था परस्पर पूरक हैं। वे सब मानव के लिए पूरक है हीं; पर बीसवीं शताब्दी के अंत तक मानव ने जो कुछ किया है, उससे मानव का अन्य तीनों अवस्थाओं की प्रकृति के साथ पूरक होने के स्थान पर विरोधी होना व विद्रोही होना प्रमाणित हुआ है। इसका प्रमाण प्रबुद्घ विकसित कहलाने वाले लोगों की ही आवाज है कि:-
1. प्रदूषण बढ़ गया जबकि प्रदूषण का कारक तत्व केवल मानव हैं।
2. धरती पर वातावरण असंतुलित हो गया है, बिगड़ रहा है।
3. समुद्र में पानी का सतह बढ़ने लगा है।
4. वन संपदा उजड़ गया है।
5. ऋतु असंतुलित हो रहे है।
6. जनसंख्या बढ़ रहा है।
ये सब कहने वाले विकसित देश है, विकासशील देश है। अविकसित देश इन देशों के निष्कर्षों को मान ही रहे है।
विकसित-अविकसित :- इस वर्तमान में विकसित देश, विकासशील देश और अविकसित देशों का वर्गीकरण भी एक विडम्बनात्मक एवं हास्यास्पद तरीके से हुआ है इनमें:-
1. विकसित देश उन्हीं देशों को कहते है जो सर्वाधिक समर शक्तियों से संपन्न है।
2. विकसित देश उन्हीं को कहते है जिस देश में सर्वाधिक लोग सर्वाधिक आहार-विहार सुविधाओं को भोगते है और संग्रह करते है।
3. विकसित देश उन्हीं को कहते है जहाँ अधिक लोग भोग, अतिभोग, बहुभोग की ओर गतिशील है।