भौतिकवाद

by A Nagraj

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एक प्रबंध है। इस प्रबंध में अस्तित्व सहज अध्ययन प्रस्तुत करना हमारी प्रतिबद्घता है। अस्तित्व निरतंर व्यक्त रूप है। इसका प्रमाण वर्तमान है। अस्तित्व स्वयं समाधान रूप है। मानव की भ्रमित बुद्घिवश संपूर्ण समस्याएँ मानव के लिए, समुदाय कल्पनावश मानव से निर्मित हैं। इस बीच नैसर्गिकता के साथ जो कुछ भी अपराध, अत्याचार मानव ने किया है, उसके कुछ परिणाम मानव को भयभीत करने के रूप में घटनाएँ देखने सुनने को मिल रही हैं। जैसे- प्रदूषण, ऋतु असंतुलन, भूमि के वातावरण में असंतुलन आदि। मानव के साथ मानव समुदाय चेतना के आधार पर विकसित, अविकसित के आधार पर जो कुछ भी द्रोह, विद्रोह और शोषण हुआ है, उससे युद्घ का प्रभाव और भावी महायुद्घ की संभावना ने मानव को आकुल-व्याकुल कर दिया हैं। आज मानव के पास समाधान की कोई दिशा न होने से मानव के प्रताड़ित, शोषित होने को स्वीकारने की विवशता में मानव आ गया है। पर इसका निराकरण एक विधि से है- वह है “समाधान विधि”। अस्तित्व स्वयं समाधान है, इसीलिए अस्तित्व सहज विधि से ही सर्वमानव के समाधानित होने का सूत्र और संभावना समीचीन हैं। इसकी आवश्यकता को अधिकांश लोग अनुभव कर रहे हैं।

पूरकता विधि से समाधान :-

अस्तित्व में समाधान, दर्शनक्रम में किसी एक की भी ख्याति समाप्त नहीं हो सकती, चाहे मानव कितना भी समस्यात्मक प्रयत्न कर ले। अर्थात् कोई न कोई मानव संतान ही सर्वशुभ समाधान के लिए प्रयत्नशील रहता ही है। इससे यह ज्ञान, विवेक और प्रक्रिया सुलभ होती है कि एक दूसरे को मिटाने की आवश्यकता नहीं। सभी अवस्थाओं का अपना-अपना उपयोग, सदुपयोग, प्रयोजन अस्तित्व सहज विधि से ही अनुबंधित है। यही पूरकता विधि है। मानव में यह पूरकता विधि संबंधों को पहचानने के आधार पर या संबंधों को निर्वाह करने के प्रमाणों के आधार पर सार्थक होती है । प्रत्येक मानव में यह अध्ययनगम्य होता है कि जहाँ-जहाँ हम संबंधों को पहचान पाते है, वहाँ-वहाँ मूल्यों का निर्वाह होना पाया जाता है। इस तथ्य के आधार पर अस्तित्व में परस्पर संबंध एक मौलिक अनुबंध है। ये भी अनुबंध पूर्णता और उसकी निरंतरता के लिए अनुबंधित हैं। पदार्थावस्था से प्राणावस्था, प्राणावस्था से जीवावस्था, जीवावस्था से ज्ञानावस्था अनुबंधित है ही इसका प्रमाण इन सब का वर्तमान ही है। इसी आधार पर ज्ञानावस्था से