भौतिकवाद
by A Nagraj
समझा जा सकता है तथा इन बातों पर विश्वास किया जा सकता है। इस आधार पर यह जो कुछ भी प्रस्तुत है, वह मूलत: “अस्तित्व मूलक मानव केन्द्रित चिन्तन” है। यह बात पहले भी कही जा चुकी है। इसको पढ़ने वाला और अध्ययन करने वाला मानव ही होगा और हर मानव अस्तित्व में ही वर्तमान हैं। इन सहज तथ्यों को स्वीकारना पर्याप्त है। भ्रम-निर्भ्रम मानव में, मानव से, मानव के लिए जागृति क्रम से स्पष्ट होता है। जो था, वही वर्तमान है। इन दोनों बातों के लिए पुष्टि प्रस्तुत की जा रही है। इस सहज तथ्य में मानव ही देखने समझने योग्य है। अस्तित्व स्वयं वर्तमान है और अस्तित्व में मानव अविभाज्य रूप में वर्तमान है। यही ध्रुव बिन्दु है, जहाँ निर्णय कर सकते है कि जो भी है, वही होता है। यही उत्तर पाने की स्थिति हैं। मानव के सम्मुख मानव सहित चारों अवस्थाओं में प्रकृति सत्ता में दिखती हैं। इन चारों अवस्थाओं की प्रकृति, इस धरती में दिखती हैं। यह धरती स्वयं एक सौरव्यूह के अंगभूत कार्यरत दिखाई पड़ती है। यह सौरव्यूह अनंत सौरव्यूहों के अंगभूत रूप में कार्यरत दिखाई पड़ता है। दिखने से तात्पर्य समझने से ही हैं। समझने की क्षमता प्रत्येक मानव में जीवन सहज रूप में समाई हुई हैं।
जीवन तात्विक रूप में गठनपूर्ण परमाणु है। यह पहले स्पष्ट किया जा चुका है। जीवन में ही आशा, विचार, इच्छा और संकल्प तथा प्रामाणिकता रुपी अक्षय शक्तियाँ कार्य करती हुई, प्रत्येक मानव में दिखाई पड़ती है जिसका अध्ययन किया जा सकता है। इसी प्रकार मन, वृत्ति, चित्त, बुद्घि, आत्मा रुपी अक्षय बल प्रत्येक मानव में क्रियारत है। इसका विश्लेषण भी पहले स्पष्ट किया जा चुका है। स्मरण रखने योग्य तथ्य यह है कि जीवन सहज शक्ति और बल अविभाज्य रूप में कार्यरत रहते हैं। इसके अध्ययन के लिए वस्तु मानव है और अध्ययन संभव है। इसी विधि से प्रत्येक मनुष्य द्वारा स्वयं को अध्ययन करना भी संभव हो गया। इसके लिए जीवन विद्या कार्यक्रम योजना और ज्ञान प्रमाणित होने को आगे प्रस्तुत किया गया है। ऐसा अक्षय बल, अक्षय शक्ति संपन्न जीवन ही जागृति पूर्वक दृष्टापद में वैभवित होने और प्रमाणित होने का कार्य सहज ही कर पाता है; जब से मानव परंपरा जागृत हो जाये तभी से।
परंपरा जागृत होने के क्रम में ही विकल्पात्मक दर्शन, विकल्पात्मक विचारधारा और विकल्पात्मक शास्त्रों को अर्पित करने के क्रम में ही यह “समाधानात्मक भौतिकवाद”