भौतिकवाद
by A Nagraj
पदार्थावस्था एक पद है, जिसमें परमाणुओं का तथा विभिन्न प्रजातियों के परमाणुओं के कार्य विन्यास को देखा जाता है जो भौतिक और रासायनिक रूप में परिगणित होते हैं। यही संपूर्ण पदार्थों की वैविध्यता के मूल में तथ्य हैं। संपूर्ण पदार्थों में सजातीय विजातीय परमाणुओं का योग (मिलन) होता है। ऐसे योग के मूल में प्रत्येक परमाणु में अपने आप में एक दूसरे से मिलने का अथवा जुड़ने का बल समाहित रहता है । ऐसे परमाणु में होने वाले गठन के मूल में भी यही तथ्य सिद्घ होता हैं। अरूपात्मक अस्तित्व (सत्ता, व्यापक) में रूपात्मक अस्तित्व संपृक्त रहने के फलस्वरुप ही बल संपन्नता अभिव्यक्त है। अस्तित्व स्वयं रूप-अरूप की अविभाज्य स्थिति होने के कारण इस बात का प्रमाण है कि संपूर्ण रूपात्मक अस्तित्व, अरूपात्मक अस्तित्व में घिरा हुआ दिखाई पड़ता है। यह घिरा हुआ स्वयं प्रत्येक इकाई के नियंत्रण को स्पष्ट कर रहा है, क्योंकि प्रत्येक इकाई अर्थात् अणु-परमाणु और परमाणु में निहित अंश भी परस्पर निश्चित दूरी, जो अरूपात्मक अस्तित्व ही है, में नियन्त्रित रहते हैं। अर्थात् नियन्त्रण की अवस्था में प्रत्येक इकाई आवेश में नहीं होती है, यही स्वभाव गति है। आवेश में ह्रास होने की संभावना अपने आप समीचीन होती हैं। यही आवेश का साक्ष्य है।
जड़ प्रकृति और चैतन्य प्रकृति इस धरती पर गण्य होते हैं। जड़ प्रकृति में पदार्थावस्था प्राणावस्था गण्य है। चैतन्य प्रकृति में जीवावस्था तथा ज्ञानावस्था गण्य है। पदार्थावस्था में परमाणु की पहचान होती है। इन परमाणुओं की स्थिति ही स्वयं विकास की अभिव्यक्ति हैं। इसी क्रम में परमाणु विकसित होकर अविकसित परमाणुओं को पहचानने की योग्यता से संपन्न होता हैं। ऐसे परमाणु चैतन्य पद में होते हैं। यही विकास की महिमा हैं। इसी क्रम में चैतन्य प्रकृति अर्थात् गठनपूर्णता प्राप्त परमाणु में पाँचों शक्तियाँ और पाँचों बल अक्षय रूप में समाहित रहते हैं। उसकी जागृति पूर्ण अभिव्यक्ति पर्यन्त गुणात्मक विकास के लिए चैतन्य इकाई प्रवर्त्त है। नियंत्रण जड़-चैतन्यात्मक प्रकृति के लिए समान रूप में वर्तमान है। वर्तमान का तात्पर्य अस्तित्व सहित स्थिति और प्रभाव से हैं। अरूपात्मक अस्तित्व का प्रभाव नियन्त्रण के रूप में प्रत्येक इकाई में प्रभावशील होना ही साक्ष्य है। परमाणु गठनपूर्णता पर्यन्त एक दूसरे से मिलकर अणु और रचना के रूप में प्रकाशित है।