भौतिकवाद
by A Nagraj
परिवार मूलक स्वराज्य व्यवस्था विधि से ही न्याय-सुलभता और लाभ-हानि मुक्त विनिमय सुलभता संभव हो जाती हैं। ऐसा संभव होने पर संग्रह के स्थान पर समृद्घ होना ही है। प्रत्येक परिवार मानव आवश्यकता से अधिक उत्पादन करने के क्रम में समृद्घि का अनुभव करता है। न्याय सुलभ होने से मानव वर्तमान में विश्वास करता ही है। फलत: सभी ओर समाधान नजर आता है। इसी सत्यतावश समृद्घि सहित परिवार मानव व्यवस्था के रूप में प्रमाणित हो जाता है।
हर परिवार में आवश्यकता से अधिक उत्पादन होने के आधार पर प्रत्येक परिवार में शरीर पोषण, संरक्षण और समाज गति के अर्थ में निश्चित उत्पादन-कार्य विधिवत् निर्धारित रहना संभव हो जाता है। फलस्वरुप उत्पादन सुलभता का अनुभव होना सहज है। इस प्रकार न्याय सुलभता, उत्पादन सुलभता, विनिमय सुलभता सहज आवर्तनशील वैभव, स्वयं नित्य उत्सव के रूप में स्वराज्य व्यवस्था को प्रमाणित कर देता है। ऐसे उत्सव के अभिन्न अंगभूत मानवीय शिक्षा-संस्कार और स्वास्थ्य संयम सहज कार्यक्रम मानव कुल में व्यवहृत होता ही रहेगा।