भौतिकवाद
by A Nagraj
उसी के आधार पर और एक महत्वपूर्ण संभावना मानव के सम्मुख होती है कि जंगलों में तैलीय वृक्षों का वृक्षारोपण किया जाय। इस विधि से आँकड़ें निकालने पर यह पा सकते है कि धरती के नीचे से जितना तेल निकालते रहे है, उस अनुपात में कहीं अधिक गुना तेल धरती की सतह में उत्पन्न होने की स्थिति है - यह समझ में आता है। इसी के साथ ऐसे वनस्पति तेलों से चलने वाले यंत्रों को तैयार कर लेना भी एक कार्यक्रम है। यह घटित हो सकता है। इस कार्यक्रम से तेल और कोयला को धरती के अंदर से निकालने की आवश्यकता शून्य हो सकती है। वनस्पति तेल जलने से जो धुआँ होता है उसको पचाने का कार्य वनस्पति जगत में बना ही हुआ है, जबकि खनिज तेल और कोयले के धुएँ के अधिकांश भाग को पचाने में वनस्पति संसार असमर्थ रहता है। परिणाम स्वरुप प्रदूषण बढ़ा, पर्यावरण असंतुलन हुआ। बड़े-छोटे यंत्रों को चलाने के क्रम में इन सभी साधनों जैसे सूर्य ऊर्जा, प्रवाह शक्ति के विद्युतीकरण, वनस्पति तेलों से यंत्रों को चलाने की प्रक्रिया को प्रमुख ऊर्जा स्रोत के रूप में पहचानते हुए समस्त यंत्र योजना और निर्माण उससे काम लेने की कार्य योजनाओं में मानव को पारंगत होने की आवश्यकता है। इसे परिवार मूलक स्वराज्य व्यवस्था कार्य-व्यवहार विधि से संपन्न किया जाना संभव है परिवार मूलक स्वराज्य योजना की कार्य योजना पहले स्पष्ट हो चुकी है।
इस प्रकार मानव कुल के द्वारा भ्रमवश किये हुए सभी भूलों का सुधार समाधान सहित व्यवस्था क्रम में हो सकता है।
अस्तित्व सहज एवं मानव सहज व्यवस्था का अध्ययन ही मूलत: नैसर्गिक मानव की पारंपरिक व्यवस्था का सहज अध्ययन है, जो स्वयं जागृति का प्रमाण हैं। सम्पूर्ण जागृति, सर्वतोमुखी समाधान, प्रामाणिकता और लोक न्याय के रूप में वैभवित हो पाते हैं। फलत: समृद्घि और अभय मानव में, से, के लिए सुलभ हो जाता है। सभी कार्यों के साथ मानव परंपरा का परिवार मूलक स्वराज्य व्यवस्था के रूप में अखण्ड समाज, सार्वभौम व्यवस्था के रूप में वैभवित होना संभव हैं। जिसकी आवश्यकता सर्वमानव में पाई जाती है अथवा स्वीकृति सर्वमानव में पाई जाती हैं। इसलिए परिवार मूलक स्वराज्य व्यवस्था कार्यक्रम को प्रमाणों के आधार पर अपनाना चाहिए।