भौतिकवाद

by A Nagraj

Back to Books
Page 227

विश्लेषण हो चुका है कि मानव बहु-आयामी अभिव्यक्ति है। सभी आयामों, कोणों, दिशाओं और परिप्रेक्ष्यों में मानव का व्यक्त होना अवश्यंभावी और नियति है। इसमें सफलता का संपूर्ण स्रोत केवल मानव परंपरा, अखण्ड समाज, सार्वभौम व्यवस्था में जागृति है और यह मानव जीवन का चिरंतन सत्य है। इसके आधार पर अर्थात् जागृति सहजता के आधार पर संपूर्ण आयामों, कोणों, दिशाओं, परिप्रेक्ष्यों में की गई अभिव्यक्ति, संप्रेषणा, प्रकाशन, कार्य-व्यवहार ही समाधान के रूप में प्रमाणित है यह स्पष्ट हो चुका है। इन तथ्यों से यह निर्धारित होता है कि स्थिति और गति में पूरकता विधि से संपन्न किया गया कार्य-व्यवहार समाधान पूर्वक ही सफल होना पाया जाता है। सफलता का तात्पर्य समाधान, समृद्घि, अभय और सहअस्तित्व के फलित होने से है। सफलता का दूसरा स्वरुप अखण्ड समाज, सार्वभौम व्यवस्था में भागीदारी प्रमाणित होने से है। यह समझदारी पूर्वक किया गया कार्य-व्यवहार का फलन, इन स्वरुपों में वर्तमान और प्रमाणित होना पाया जाता है। इससे यह पता लगता है कि समझकर किया गया कार्य व्यवहार सफल होना संभव है, सफल होना आवश्यक है, सफल होना सार्थक है और अनिवार्य है।

व्यवहार प्रमाण के आधार पर ही सार्वभौम व्यवस्था और अखण्ड समाज प्रमाणित हो पाता है। इसलिए आवश्यकताएँ सीमित अथवा संयत होती हैं। वर्तमान में विश्वास ही व्यवस्था का प्रमाण है। इसलिए भी मानव का संयत होना सहज होता है। मानव का संयत होना ही आवश्यकताओं को संयत अथवा सीमित होना है। यही समझदारी की मूल वस्तु है। ऐसी समझदारी के आधार पर ही सीमित आवश्यकताओं के आधार पर उत्पादन कार्य संयत होना, विनिमय कार्य लाभ-हानि से मुक्त विधि से संपन्न होना, देखने को मिलता है। फलत: लाभोन्माद संयत होना सहज है। कोई एक उन्माद संयत होने के आधार पर, अन्य दोनों उन्माद संयत हो जाते हैं। लाभोन्माद, कामोन्माद और भोगोन्माद ही मानव परंपरा में अव्यवस्था का कारक एवं द्योतक है। न्याय सुलभता से भोगोन्मादी और कामोन्मादी प्रवृत्तियाँ संयत हो जाती हैं। समग्र व्यवस्था में भागीदारी, सर्वतोमुखी समाधान और प्रामाणिकता के आधार पर सहज ही लाभोन्माद का संयत होना संभव है। इस प्रकार तीनों उन्माद शांत होकर, सार्वभौम व्यवस्था, अखण्ड समाज परंपरा के उत्सव में अथवा नित्य उत्सव में विलीन हो जाते हैं।