भौतिकवाद

by A Nagraj

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आवश्यकताएँ संयत हो जाती है। उत्पादन की तादाद वह भी यांत्रिकता संबंधी वस्तुओं का (अनावश्यक) उत्पादन न्यूनतम होते जाता है। फलस्वरुप इससे संबंधित वस्तुओं की आवश्यकता कम हो जावेगी। सदुपयोग की विधि में आज भी यंत्रों का उपयोग न्यूनतम हो जाता है। सुविधा, मनमौजी, रंगरैली कार्यक्रमों के लिए भय तथा प्रलोभन नहीं रहता। भ्रमवश लाभोन्मादी, कामोन्मादी, भोगोन्मादी विधि से आज सर्वाधिक यांत्रिक उपकरणों का उपयोग होता हुआ आंकलित होता है। ये सब इसमें से व्यर्थता जिन-जिन में मूल्यांकित होता है, कम होना स्वाभाविक है। यंत्र दूरसंचार, दूरदर्शन समाज गति के अर्थ में अवश्य रहेगा, जो परिवार मूलक स्वराज्य व्यवस्था (जो एक परिवार में विश्व परिवार रूप में समाज रचना, उसकी व्यवस्था) का तालमेल बनाए रखने के लिए उन यंत्रों का उपयोग, सदुपयोग और प्रयोजनशीलता रहेगी। हर परिवार मानव के लिए हर देश, हर काल में समाधान, समृद्घि, अभय, सहअस्तित्व सहज विधि से जीने की कला वर्तमानित रहेंगी।

ऊपर कहे अनुसार व्यवस्था और व्यवस्था में भागीदारी को जीता हुआ मानव में उत्सवशील रहने के आधार पर अपव्ययता अपने आप समाप्त हो जाती है। इसलिए यंत्रों की आवश्यकता कम हो जावेगी। फलत: कोलाहल, भय, सशंकता समाप्त होती जायेगी; उत्साह, उत्सव, नित्य उमंग निरंतर उद्गमित होता जायेगा। फलस्वरुप सुख, समाधान, सौंदर्य बोध निरंतर सुलभ रहेगा। इसलिए चंचलता-कौतूहल अपने आप समाप्त होते जाएगा। हर यात्रा; परीक्षण, निरीक्षण, सर्वेक्षण, अध्ययन, अध्यापन और व्यवस्था में श्रेष्ठता के ध्रुवों पर शिक्षा प्रदान करना और शिक्षा ग्रहण करने के अर्थ में परंपरा सहज होगा।

मानव को अपने में अभी तक के अध्ययन से वर्तमान परिस्थितियों को ध्यान में रखकर इस बात का विश्लेषण समझ में आना आवश्यक है कि “मैं जो कुछ भी करता हूँ, समझकर करता हूँ या करके समझता हूँ अथवा कोई कराता भी है?” इन बातों पर विचार करना आवश्यक है।

अस्तित्व को सहअस्तित्व के रूप में ध्यान में लाने पर पता चलता है कि जागृति पूर्वक मानव ही अस्तित्व में दृष्टा है। दृष्टा पद की संभावना में प्रत्येक मानव है, इसका साक्ष्य व्यवहार में प्रमाणित होने वाली कल्पनाशीलता और कर्म स्वतंत्रता ही है। इस बात का