भौतिकवाद

by A Nagraj

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मानवीयतापूर्ण आचरण सहित परिवार मूलक स्वराज्य व्यवस्था और व्यवस्था में भागीदारी सबको सुलभ हो पाती हैं। यही कल्पनाशीलता का तृप्ति है।

इस प्रकार परिवार मूलक, स्वराज्य गति सहित स्वानुशासन संपन्न होना ही मानव पंरपरा का सहज लक्ष्य है। इसी क्रम में मानव का मानवीयतापूर्ण विधि से स्वयं में व्यवस्था और समग्र व्यवस्था में भागीदारी संपन्न होना सहज है। ऐसी सहजता किसी भी समुदाय परंपरा में, से सुलभ नहीं हो पाई। तथापि हर देश, हर समुदाय में श्रेष्ठतम व्यक्तियों का होना, इतिहास सहज आंकलन के रूप में भी देखा जा रहा है। आज भी आदर्श व्यक्ति अथवा व्यक्तित्वों को हर समुदाय, हर देश, हर परंपरा में जन सामान्य स्वीकारता हुआ देखने को मिल रहा है। जीवन ज्ञान, अस्तित्व दर्शन सहज अध्ययन से मानवीयतापूर्ण आचरण प्रमाणित हो जाता है। मानवीयता पूर्ण आचरण सहज व्यक्ति तथा परिवारों को अब पहचानना संभव है। आदर्शवादी-भौतिकवादी कोई समुदाय, कोई शासन, कोई समाज सेवी संस्था ऐसे व्यक्ति, परिवार को पहचानने का प्रयास नहीं कर पाए।

परिवार मूलक स्वराज्य व्यवस्था सहज संभावना के लिए, यही सर्वेक्षण का आधार है। मानव में, मानवीयतापूर्ण आचरण सहज पहचान इस प्रकार से देखा गया है - जो स्वधन, स्वनारी/स्वपुरुष, दया पूर्ण कार्य-व्यवहार करता है। संबंधों की पहचान, मूल्यों का निर्वाह और मूल्यांकन कार्य करता है, उभय तृप्ति सहज प्रमाण होता है। तन, मन, धन रुपी अर्थ को सदुपयोग, सुरक्षा करता है। यही मानवीयता पूर्ण आचरण का स्वरुप है।

i) स्वधन का स्वरुप है :- प्रतिफल, पारितोष, पुरस्कार से प्राप्त धन। प्रतिफल वह वस्तु है - प्राकृतिक ऐश्वर्य पर श्रम नियोजन करने के फलस्वरुप उपयोगिता, सुन्दरता (कला) मूल्यों सहित वस्तुएँ जो उपलब्ध होती है और की गई सेवाओं के प्रतिफल में प्राप्त वस्तु पुरस्कार, किसी श्रेष्ठ अभिव्यक्ति के फलस्वरुप में प्राप्त वस्तु हैं। पारितोष, स्नेह मिलन उत्सव को अथवा उत्सव सहज विश्वास के अभिव्यक्ति सहज रूप में प्राप्त वस्तु हैं। जैसे बुजुर्गों से मिलने से, बच्चों से मिलने से, जन्म दिवस, आनंद उत्सव में अर्पित वस्तुएँ पारितोष के रूप में गण्य होती हैं। प्रसन्नता का उत्सव सहित अर्पित वस्तु पारितोष हैं। इस प्रकार से स्वधन का स्वरुप स्पष्ट है।