भौतिकवाद

by A Nagraj

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कल्पनाशीलता और कर्म स्वतंत्रता के आधार पर ही मानव ने अपनी आशा, विचार, इच्छा के अनुरुप सामान्य आकांक्षा, महत्वाकांक्षा संबंधी वस्तुओं और उपकरणों को तैयार कर लिया है। इसी के आधार पर निर्भर रहकर अखण्ड समाज, सार्वभौम व्यवस्था साकार नहीं हो पाई। इसलिए मानव सहज विभूतियों को समझना और मानव आकांक्षा सहज अखण्ड समाज, सार्वभौम व्यवस्था को साकार करने के उद्देश्य से मानव का संपूर्ण अध्ययन करना आवश्यक है।

(1) चयन और आस्वादन :-

बच्चे-बूढ़े, ज्ञानी, अज्ञानी, विद्वान, मूर्ख सब में चयन करना और आस्वादन करने की क्रिया को देखा जा सकता है। बच्चों को बहुत सारे खिलौने, विविध मिठाइयों के सम्मुख रखने पर हर बच्चा अपने-अपने तरीके से किसी-किसी वस्तु को अपनाता हुआ देखने को मिलता है। इस प्रकार सभी बच्चे विविध प्रकार से चयन क्रिया संपन्न करते हुए देखने को मिलते हैं। इसको खेत, खलिहान, फैक्ट्रियों, उद्योगों और उत्पादन, बाजार, व्यापार, जंगल, झाड़ी-औषधि, जड़ी-बूटी आदि सभी जगहों में आजमाया जा सकता है। यह चयन क्रिया सर्वाधिक रुचि मूलक विधि से होता देखने को मिलता है। फलत: आस्वादन का कार्यकलाप पाँचों ज्ञानेन्द्रिय प्रधान विधि से होना पाया जाता है। कर्मेन्द्रियों द्वारा चयन और शब्द, स्पर्श, रूप, रस, गंधेन्द्रियों द्वारा जीवन आस्वादन क्रिया करता हुआ देखने को मिलता है। इसको हम प्रत्येक स्थिति में परीक्षण कर सकते हैं। स्वयं को भी निरीक्षण परीक्षण की वस्तु के रूप में इस्तेमाल कर सकते हैं और दूसरों को भी उपयोग कर सकते हैं।

(2) तुलन और विश्लेषण :-

तुलन में मानव प्रियाप्रिय, हिताहित, लाभालाभात्मक तुलन को हर स्थिति में भ्रमित व्यक्ति करता है। प्रिय-अप्रियता का संपूर्ण तुलन पाँचों ज्ञानेन्द्रियों के साथ ही सर्वाधिक हो पाता है। स्वयं के साथ भी, दूसरों के साथ भी यही देखने को मिलता है। हिताहित संबंधी तुलन शरीर स्वास्थ्य केन्द्रित विधि से होना पाया जाता है। स्वास्थ्य के लिए उचित अनुचित के आधार पर हिताहित का निर्णय होना स्पष्ट है। जहाँ तक