भौतिकवाद

by A Nagraj

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5. श्रम मूल्यों का मूल्यांकन, स्वयं का, दूसरों का मूल्यांकन।

6. श्रम विनिमय।

7. हर मानव सहज रूप में अक्षय बल, अक्षय शक्ति संपन्न है। श्रम शक्ति ही निपुणता, कुशलता के रूप में मूल पू्ंजी है। यह पूंजी निवेश, पूंजीवाद और साम्यवाद का विकल्प है।

8. संग्रह के स्थान पर समृद्घि।

9. मानव व नैसर्गिक संबंध, हर परिवार मानव का उत्पादन में भागीदारी।

10. हर परिवार में व्यवहार व उद्योग, परिवार व्यवस्था में भागीदारी।

इन सबके मूल में, प्रत्येक व्यक्ति में जीवन ज्ञान, अस्तित्व दर्शन ज्ञान, मानवीयता पूर्ण आचरण ज्ञान होना एक अनिवार्यता है। तभी हर मानव में, से, के लिए स्वयं में विश्वास, श्रेष्ठता का सम्मान, प्रतिभा और व्यक्तित्व में संतुलन, व्यवहार में सामाजिक, व्यवसाय में स्वावलंबी होना सहज होता है। मानव जब तक स्वयं में, से, के लिए विश्वास नहीं करेगा, तब तक एक व्यवस्थापक रहकर अथवा एक कार्यकर्ता रहकर अथवा और भी किसी स्थिति में रहकर संतुष्टि, संतुलन, नियंत्रण पाना संभव नहीं है। फलस्वरुप अव्यवस्था को पैदा करेगा ही करेगा। इसलिए जीवन प्रत्येक मानव में, समान रूप में विद्यमान होने के सत्य में जागृति आवश्यक है।

जीवन के क्रियाकलाप का पहला स्वरुप :-

1. कल्पनाशीलता और कर्म स्वतंत्रता है।

2. जानना, मानना, पहचानना, निर्वाह करने की क्रिया है।

3. आस्वादन और चयन क्रिया है।

4. तुलन और विश्लेषण क्रिया है।

5. चिन्तन और चित्रण क्रिया है।

6. बोध और ऋतंभरा (संकल्प) क्रिया है।

7. अनुभव और प्रामाणिकता पूर्ण क्रिया है।

ये सभी क्रियाएँ जागृतिपूर्ण जीवन सहज रूप में प्रमाणित होना पाया गया और जागृति प्रत्येक व्यक्ति में होना संभावित भी है।