भौतिकवाद

by A Nagraj

Back to Books
Page 212

काम करते थे, वह स्वचालित होने के उपरान्त भी थोड़े लोगों के साथ भी, व्यवस्थापक और कार्यकर्ताओं के बीच बंटवारे का प्रसंग एक मुद्दे के रूप में बना ही रहता है। इसमें अधिकांश रूप में यही सुनने को मिल रहा है स्वचालित संयंत्रों में काम करने वाले यंत्र नियंत्रक के रूप में ही अधिकांश लोग हैं। स्वचालित संयंत्र विहीन स्थितियों में उतना ही पढ़ा लिखा व्यक्ति जो कुछ भी साधनों को प्राप्त करता है, उससे अधिक स्वयं को मिलने के आधार पर सांत्वना पाते हुए देखा जा रहा है। कुछ संयंत्रों में यह भी आरंभ हो चुका है कि बंटवारे में और परिवर्तन की आवश्यकता है। यह मूलत: प्रलोभन के तृप्ति बिंदु न होने से है। यही समस्या मूलत: व्यवस्थापक और कार्यकर्त्ताओं में परेशानी का मुद्दा है। मूल व्यवस्थापक संग्रह और भोग के लिए लाभोन्मादी मानसिकता को अपनाए रहते हैं। कार्यकर्त्ता सदा ही, आज के बाद और ज्यादा प्रतिफल मिले, कम काम करना हो और जिम्मेदारियाँ कुछ न हो इसी का अनुसंधान करता ही रहता है, ऐसा देखने को मिलता है। यह स्थिति कमोवेश सभी देशों में ऐसी ही है। इससे यह पता चलता है कि लाभोन्मादी विधि में किए जाने वाले व्यवस्थापक और कार्यकर्त्ता दोनों के संतुष्ट होने को कोई बिंदु नहीं है।

आवश्यकता के आधार पर ही सभी उद्योग स्थापित हो पाते हैं। लाभोन्माद के आधार पर ही असंतुलन आरंभ होता है। असंतुलन, मानव की वांछा व उपलब्धि के बीच रिक्तता ही है। इसमें उल्लेखनीय तथ्य यही है कि भय और प्रलोभन के आधार किया गया समझौता ही तत्कालीन सांत्वना के रूप में होना देखा गया है। परंतु अन्तत: असफल होता है। यही व्यवस्था और कार्यकर्त्ता दोनों में देखने को मिलता है। एक क्षण सांत्वना रहती है तो बहुत क्षण असंतोष रहता है। यही स्वरुप आज का चित्रण है।

उत्पादन और संतुलन सहज वैभव का मूल सूत्र विकल्प के रूप में होना समझ में आता है कि:-

1. भय और प्रलोभन के स्थान पर मूल्यों की पहचान, निर्वाह और मूल्यांकन करने का दायित्व।

2. लाभोन्माद के स्थान पर विकल्प के रूप में आवर्तनशीलता की समझ और प्रक्रिया।

3. स्वयं व्यवस्था एवं समग्र व्यवस्था में भागीदारी।