भौतिकवाद
by A Nagraj
10) उद्योग, आवश्यकता, संबंध और संतुलन
मानव का निरीक्षण करने पर पता लगता है कि परिवार मानव विधि से मानव में आवश्यकताएँ प्रतीत होती हैं। परिवार मानव का तात्पर्य एक से अधिक समझदार मानव परस्पर संबंध को पूरक विधि से पहचानने के फलस्वरुप आवश्यकताएँ अपने आप प्रतीत होती हैं। प्रतीत का तात्पर्य- प्रत्येक रूप में प्रमाणित होने का प्रयास उदय है। इसे प्रत्येक दो या दो से अधिक मानव परस्परता में पूरकता की अपेक्षा करता हो, विश्वास करता हो ऐसी स्थिति में ही आवश्यकताएँ समझ में आती हैं। यथा जानने, मानने में आता है, फलस्वरुप प्रयासोदय होना पाया जाता है । प्रयासों की प्रक्रिया रूप में प्राकृतिक ऐश्वर्य पर विशेषकर वन, खनिज पर श्रम नियोजन होना, फलस्वरुप आवश्यकता के रूप में प्राकृतिक ऐश्वर्य परिवर्तित होना पाया जाता है।
1. पत्ते से तन ढंकना है, तो उसके लिए समुचित प्रक्रिया करना ही होगा। तभी पत्ते से तन ढंकने की आवश्यकता पूरी होगी।
2. यदि पेड़ के छालों से तन ढंकना है, उस स्थिति में आने के लिए भी समुचित प्रक्रिया करना ही होगा। तभी तन ढंकना बन पाएगा।
3. रुई से तन ढंकने की जब बारी आई, तब उसके लिए समुचित प्रक्रिया मानव ने प्रमाणित की। फलस्वरुप कपड़े से मानव तन ढंकता हुआ देखने को मिला।
4. पत्तों से यदि आवास, फूस से आवास, झाड़ो से आवास, झाड़ पत्ते, फूल से आवास बनाने की आवश्यकता के आधार पर ही प्रक्रियायें प्रमाणित होती हैं।
तो इसी क्रम में मिट्टी, पत्थर के संयोग से मकान; लोहा, सीमेंट से मकान; लकड़ी, लोहा, मिट्टी, पत्थर, सीमेंट से मकान की आवश्यकता के साथ-साथ विविध प्रकार-आकार वाले आवासों को आज देखा जा रहा है। इसे आज मानव की आवश्यकता के आधार पर प्रसवित अथवा उत्पन्न कल्पनाशीलता और उसके क्रियान्वयन क्रम में प्रमाणित प्रक्रियाएँ स्पष्ट हुई हैं, इसी क्रम में गतिशील यंत्रों का धारक-वाहक, यंत्रों की आवश्यकता के आधार पर अनेकानेक यंत्रों की परिकल्पाएँ और प्रक्रियाएँ प्रमाणित हुई। इन आवश्यकताओं के साथ ही, उत्पादन के रूप में प्रक्रियाएँ प्रमाणित करते आए। इसी प्रक्रिया में पारंगत होने, प्रमाणित करने की भूमिका को मानव ने निर्वाह किया। इन्हीं