भौतिकवाद
by A Nagraj
एक प्रजाति के व्यक्ति को हो पाया है, वह सभी प्रजाति के व्यक्तियों में होना पाया गया है। इस समझदारी से प्रत्येक प्रकार के व्यक्ति समझदारी सहज अधिकार के रूप में समान दिखाई पड़ते हैं। यही मानव जाति में मौलिक तत्व है, इसी के आधार पर मानव की एकता, अखण्डता सहज सूत्र समाहित हैं। मानव के शरीर रचना की विविधता के आधार पर एकता और अखण्डता की कल्पना भी होना संभव नहीं है। इसलिए जीवन में समानता के आधार पर मानव सहज एकता स्पष्ट हो जाता है। जबकि नस्ल के बदलने से अथवा शरीर के आकार-प्रकार के बदलने मात्र से मानव की एकता, अखण्डता नहीं बन पाती।
अस्तित्व सहज रूप में मानव कल्पनाशील और कर्म स्वतंत्र है। इस आधार पर मानव का मौलिक होना अध्ययनगम्य हो चुका है। इसी मौलिकता के आधार पर ही जागृति विधि प्रणाली पूर्वक मानव को एक न्यायिक, समाधानित, प्रामाणिकता पूर्ण परंपरा के रूप में, प्रमाणित होना ही आज की आवश्यकता है। अस्तु, मानव में जीवन ज्ञान, अस्तित्व दर्शन रुपी अपनी समझदारी में विश्वास करना ही, जागृति का शुभारंभ हैं। ऐसी समझदारी में जागृति पूर्वक मानव को अस्तित्व और सहअस्तित्व में अखण्डता को पहचानना संभव हो गया है।
यह जीवन ज्ञान, अस्तित्व दर्शन ज्ञान एवं मानवीयतापूर्ण आचरण पूर्वक प्रमाणित हो जाता है।
प्राण कोषाएँ कृत्रिम नहीं होते :- प्राण कोषाएँ मूलत: रसायन वैभव की देन हैं। रासायनिक द्रव्य भौतिक वस्तुओं का ही उदात्तीकृत रूप है - यह स्पष्ट हो चुका है। रासायनिक द्रव्य अपने आप में प्राकृतिक द्रव्य है। मानव भी यदि संयोग पूर्वक रासायनिक घटना को घटित करता है, वह भी प्राकृतिक ही है, क्योंकि मूल द्रव्य पदार्थावस्था का ही है चाहे ठोस हो, तरल हो या विरल हो। विभिन्न रसायनों के संयोगपूर्वक ही प्राण-कोषाओं के रूप में रासायनिक रचना अथवा रासायनिक मूल रचना कोषाओं के रूप में भी संपन्न होती है। प्राणकोषा जो ठोस रूप में रचित रहती है उसी में प्राण सूत्र रचना कार्यकारी प्रवर्तन सहित समाया रहता है। इसी क्रम में रासायनिक रसों में कोषा का आप्लावित रहना पाया जाता है। इसका तात्पर्य है कि रसायन रसों में डूबी हुई स्थिति और ऊष्मा के दबाव वश ही मूलत: रासायनिक द्रव्य से रचित प्राणकोषा