भौतिकवाद
by A Nagraj
श्वसन क्रिया सहित ही विपुलीकरण और रचना कार्य को संपन्न करता है। यही प्राण कोषा रचना व महिमा का तात्पर्य है। श्वसन क्रिया करता हुआ कोषा ही प्राण कोषा के नाम से ख्यात है। ऐसी प्राण कोषाएँ अपने आप विपुलीकरण अर्थात् एक कोषा से दो, ऐसे ही अनेक बन जाने की विधि प्राण कोषाओं में निहित रहती हैं। यह विपुलीकरण विधि भी रासायनिक वैभव के सहज क्रियाकलाप है।
रसायन द्रव्य तरल, विरल, ठोस रूप में है। रसायन द्रव्य विभिन्न अणुओं के संयोग से बनने वाली वस्तु है। अणुओं के मूल में परमाणुओं का होना पाया जाता है। प्रत्येक परमाणु अपने “त्व” सहित व्यवस्था सहज रूप में है। इसके आधार पर परमाणुओं के संयोग से अणु और विभिन्न अणुओं के संयोग से भी व्यवस्था स्पष्ट हो जाती है। व्यवस्था जड़-चैतन्य प्रकृति में वर्तमान सहज आचरण हैं। यही आचरण सहअस्तित्व सहज क्रम में समग्र व्यवस्था में भागीदारी है। इसी क्रम में रासायनिक द्रव्य व प्राण कोषाओं से रचित रचनाएँ सब अपनी-अपनी परंपरा सहज विधि से आचरणशील है ही। प्रत्येक इकाई का स्वयं में व्यवस्था होने का आचरण, वर्तमान में अक्षुण्णता के रूप में देखने को मिलता है, जैसे लोहे का परमाणु-अणु “लौहत्व” के साथ वर्तमानित रहना पाया जाता है। इसकी अक्षुण्णता प्रमाणित है। एक प्राण कोषा और उनसे रचित रचना अपने-अपने “त्व” सहित व्यवस्था के रूप में प्रमाणित हैं। ऐसी प्राण कोषाएँ रचना सूत्र संपन्न रहते हैं। विधिवत् रचना के लिए निश्चित सूत्र रहते ही हैं। प्राण कोषा में ही उस-उस प्रजाति के अनंत प्राण कोषाओं में भी, प्राण सूत्र के आधार पर ही रचनाएँ निश्चित होना पाया जाता है। यही “त्व” सहित व्यवस्था और समग्र व्यवस्था में भागीदारी का साक्ष्य है।
प्राण सूत्र सहित प्रत्येक कोषा अपने “त्व” सहित व्यवस्था रुपी कोषा है। फलस्वरुप किसी एक रचना रुपी सम्मिलित प्रकाशन समग्रता है। ऐसी समग्रता में प्रत्येक प्राण कोषा का भागीदार होना स्पष्ट है। इसलिए प्रत्येक प्राण कोषा समग्र व्यवस्था में भागीदार है। प्राण कोषा अपने में व्यवस्था होने के स्वरुप में बीज-वृक्ष नियम संपन्न रहता है। यही प्राण कोषाओं में “त्व” सहित व्यवस्था का प्रमाण है। वनस्पति, जीव और मनुष्य शरीर के साथ यही रचना सूत्र संपन्न होते हैं। प्राण सूत्र विधि से, बीज-वृक्ष नियम विधि से प्राणावस्था की सभी रचनाएँ स्पष्ट हैं। प्रत्येक रचना अपने में एक