भौतिकवाद

by A Nagraj

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संपूर्ण रचना होते हुए अनेकानेक रचनाओं के साथ सहअस्तित्वशील रहना देखने को मिलता है। जैसे आम, नीम आदि अनेक प्रजाति के वृक्ष, पौधे-लता आदि सभी एक दूसरे के साथ, बीज-वृक्ष नियम सहित निश्चित आकार व आचरण को प्रकाशित करते हुए देखने को मिलता है।

इसी क्रम में जीवावस्था, समृद्घ मेधस युक्त शरीर और जीवन का संयुक्त साकार रूप होते हुए भी जीवन, शरीर को तादात्म्य विधि से स्वीकारा रहता है। इसका सूत्र है- जीवन, शरीर को जीवन्त बनाये रखते हुए शरीर को ही अपना जीने की स्थली स्वरुप स्वीकारता है। इसलिए जीवन शक्तियाँ उन-उन शरीर रचना को अनुरुप बह पाती है। इसी यथार्थता के आधार पर अनेकानेक प्रजाति के जीवों का वर्तमान होना स्पष्ट है। ये सब वर्तमान में ही हैं। प्रत्येक प्रजाति के जीव अपने ढंग से, अपनी परंपरा को बनाये रखते हुए देखने को मिलता है। प्रत्येक जीव अपने में व्यवस्था होने के कारण अपनी प्रजाति के जीव कोटि के साथ सम्मिलित होता है। इसी के साथ किसी एक प्रजाति के जीव अनेकानेक प्रजाति के जीव के साथ जीता हुआ भी देखने को मिलता है। इससे यह भी स्पष्ट हुआ कि एक प्रजाति की संपूर्ण वनस्पतियाँ अन्य प्रजाति की वनस्पतियों के साथ वर्तमान होना देखने को मिला। और एक प्रजाति के जीवों का दूसरी प्रजाति के जीवों के साथ जीना देखने को मिला। ये सभी क्रियाकलाप स्वाभाविक रूप में नियम, नियंत्रण, संतुलन विधियों से संपन्न होते आए।

पदार्थावस्था में परिणाम क्रियाकलाप रुपी परंपरा में नियंत्रित रहना स्वाभाविक वर्तमान हैं। प्राणावस्था में संपूर्ण रचनाएँ बीजानुषंगीय विधि से नियंत्रित रहना तथा संतुलित रहना प्रमाणित है, पीपल की पत्ती, झाड़ तथा जड़, उसी प्रकार अन्य झाड़ पौधे-लता आदि का अपने-अपने तरीके के पत्र-पुष्प, फल, बीज तथा जड़ होना पाया जाता है । ये सब रचना कार्य में नियंत्रण का द्योतक है। नियंत्रण में नियम समाया रहता है, क्योंकि नियम पूर्वक ही रासायनिक योग और वैभव होना पाया जाता है। प्रत्येक रासायनिक प्रक्रिया में, एक से अधिक प्रजाति के अणुओं का संयोग होना देखा गया है। ये अणु निश्चित मात्रा व नियम से ही संयोगों में आते हैं। फलत: रासायनिक वैभव स्पष्ट होता है। मूलत: पदार्थावस्था में परमाणु व अणु नियमित रहना पाया जाता है। प्राणावस्था में इस नियम के आधार पर ही नियंत्रण प्रकाशित हुआ। यह नियंत्रण बीज से वृक्ष तथा