भौतिकवाद

by A Nagraj

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जो खेत खलिहानों में काम करते है, प्रकृति के साथ अपना पेट भर लेते है और सामान्य रोगों को अपने आहार संयम से ही स्वयं ठीक कर लेते हैं। इस प्रकार की अर्हता, संकर पशुओं में देखने को नहीं मिली। इनमें होने वाले रोग बहुत ही जटिल हो जाते हैं। ये अपने में ठीक हो नहीं पाते। इनको ठीक करने में मानव बहुत समर्थ हुआ है या नहीं, इस बात से अधिक इन पर ध्यान देना प्रधान वस्तु रहता है । इस प्रकार इन प्रजाति की गायों में, पराधीनता अधिक देखने को मिली। यह भी देखने को मिला कि इनमें दूध अधिक निष्पन्न होता है। परंतु उसकी गुणवत्ता कम हो जाती हैं। उनमें और इनमें एक तुलनात्मक बात यह निकली कि ये अपने वंश में गुणवत्ता को यथावत् स्थापित नहीं कर पाते शनै:-शनै: गुणवत्ता गिर जाती है, कम हो जाती है। जबकि प्राकृतिक रूप में जो परंपरा गाय की रही है, वे भी काफी दूध देती हैं। गाय भैंस परंपरा अपने वंश को बनाये रखने में समर्थ दिखते हैं।

इस शताब्दी में मानव पर भी संकरता की बात सोची गई। इसमें प्रधान मुद्दा मानव की मेधस रचना में किसी में स्वेच्छिक नियंत्रण होने के संबंध में प्रयत्न हुए। एक श्रेष्ठ बुद्घिमान व्यक्ति को, उन्हीं के शरीरगत, प्राणकोषाओं के आधार पर अनेक शरीर रचना करने के संबंध में भी प्रयत्न हुए। ऐसे प्रयत्नों मे कोई खास सफलता नहीं मिली। यह प्रयास विगत में आया हुआ भौतिकवाद चिंतन के अनुसार, शरीर रचना के आधार पर मानव के विकास को पहचानने के क्रम में सोचा समझा और किया गया। इन सबको करने में कोई सफलता नहीं मिली।

संकरीकरण विधि से मानव में कुछ लोग नस्ल परिवर्तन को मानते हैं। उनका सोचना है कि नस्ल के आधार पर अच्छा-बुरा आदमी होता है मूलत: मानव शरीर और जीवन का संयुक्त साकार रूप है, इस कारण काले-गोरे, मोटे-पतले, ऊँचे-ठिगने सभी प्रकार के मानव जीवन और शरीर के संयुक्त रूप में ही नियंत्रित है। मानव में जो कुछ भी परितर्वन होना या जागृति होना है वह, जीवन में ही होना है। जीवन में परिवर्तन होने का साक्ष्य समझदारी है। जीवन में ही समझदारी और संस्कार समाया रहता है। जीवन, शरीर के द्वारा प्रमाणित होता है। ऊपर कहे सभी प्रकार के मानवों में जीवन समान प्रकार में व्यक्त होना सहज है। क्योंकि हर प्रकार के आदमी गणित को समझते है, समझा है। शरीर शास्त्र को समझता है, वनस्पति शास्त्र को समझता है, जो समझदारी