भौतिकवाद

by A Nagraj

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प्रकार प्रकृति सहज गुण प्रवर्तन, गति, बल वैभव अभिव्यक्तियों को प्राकृतिक न समझकर, कृत्रिम समझने मात्र से ही, मानव कुल को अपराधी बनाने का आधार पैदा कर दिया। यह भी कृत्रिमता हुई या कृत्रिमता का फल हुआ। जितना मानव कृत्रिम होता गया उतना ही प्रकृति के साथ अपराध करते गया अथवा झुकता, छुपता गया या भयभीत होते गया। उसी प्रकार मानव के साथ द्रोह-विद्रोहात्मक षंडयत्र रचता आया, फलस्वरुप मानव का दुखी होना पाया गया। ऐसा दुख शीरीरिक, मानसिक विचित्र रोगों के रूप में अथवा विसंगतियों के रूप में देखने को मिला। इससे मानव सहज ही छूटना चाहता है। इसके लिए सहज उपाय है - “मानव अपने को अस्तित्व में अविभाज्य रूप में है” ऐसा जाने, माने, पहचाने और निर्वाह करें। यह एक ही विधि है। कृत्रिमता - एकाधिकार, व्यापारवादी होना ही व्यापारवाद है। सृजनशीलता लोकव्यापीकरण होता है। यह जागृति क्रम जागृत परंपरा में, से के लिए उपकारी होना पाया जाता है।

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