भौतिकवाद

by A Nagraj

Back to Books
Page 200

भरने के पात्र के रूप में टमाटर मोटा हो गया। इसी भाँति अंगूर में देखा गया। इन सब अनुभवों के आधार पर, यह निश्चय होता है कि प्राकृतिक रूप में जो कुछ भी बीजानुषंगीय विधि से स्थापित बीजों का संरक्षण करना होता है, उसके लिए जैविक और वनस्पति जन्य उर्वरक विधि को अपनाना ही उपाय है। इसके लिए कृषि के साथ पशु पालन आवश्यक होना पाया गया।

(8) अस्तित्व सहज स्वाभाविकता को कृत्रिमता मानना भी अपराध का कारण रहा :-

अब मूलत: प्रकृति में कृत्रिमता और प्रकृति पर विजय इन सब बातों का क्या सार निकलता? इन्हीं बातों को निष्कर्ष रूप देने के क्रम में चर्चा कर विश्लेषण का मुद्दा बनाया गया है। ऊपर प्रस्तुत तर्क और विश्लेषण के आधार पर प्राणावस्था की वस्तुओं को मानव अपनी कल्पनानुसार, जिसको कृत्रिमता कहता है, उससे उन प्राणावस्था सहज प्रकृति को मदद करना, परिवर्तित करना और किसी लक्ष्य में पहुँचना नहीं बना। इसलिए हम इस निष्कर्ष पर आते है कि प्रकृति सहज पदार्थावस्था की वस्तुओं का संयोग संयोजनपूर्वक आवास, अंलकार, दूरश्रवण, दूरदर्शन, दूरगमन संबंधी वस्तुओं को पाने की संभावना थी ही, उसे मानव ने पा लिया। अस्तित्व में विभिन्न प्रकार से वैभवित पदार्थावस्था की वस्तुएँ संयोग से, योग से अपने स्वभाव गुण को संयोग गुण में व्यक्त करना सहज रहा। जैसे एक पत्थर को उठाने पर जितने बल से वह उठ सकता था, उसके लिए वह तैयार ही रहा। इसी प्रकार उतने बल से उतनी दूर जाने का गुण, उसी पत्थर में समाया रहा। इसलिए वह चल भी दिया।

इसी प्रकार शब्द, गुण, रुपों का प्रतिबिम्बन, चुम्बकीय गुण, विद्युतीय गुण, तापीय गुण इन सबमें अपने गुणानुसार परावर्ती ही कार्य करना बना रहा। इन सबका योग-संयोग यंत्रीकरण की प्रजातियों से प्रमाणित हुआ जिसको मानव ने प्रकाशित किया यह मूलत: कृत्रिमता न होकर अस्तित्व सहज स्वाभाविकता, सृजनशीलता ही रही। इसे कृत्रिमता मान लेना ही मानव विरोधी, प्रकृति विरोधी, मानव विद्रोही प्रवृत्ति का आधार हुआ। इस