भौतिकवाद
by A Nagraj
चाहता है। इन आधारों पर समाधान ही मानव का शरण, वैभव व अपेक्षा है। समाधान अस्तित्व सहज है। अस्तित्व जैसा है, वैसे ही समझने की स्थिति में समाधान ही मानव को करतल गत होता है। संपूर्ण सृजनशीलता का उपाय मानव में जो कुछ भी सूझ-बूझ से इस रूप में आया है उसका सृजन भी निश्चित प्रयोजन है, जैसे:-
कृषि कार्य - यह स्वाभाविक रूप में मानव शरीर के आहार प्राप्ति के क्रम में होना पाया जाता है। आहार संबंधी समस्याएँ समाधानित होती हैं। ऐसे समाधान के साथ ही कृषि परंपरा समृद्घ होती हैं। कृषि के साथ मानव ने भूमि संरक्षण, जल संरक्षण, बीज संरक्षण के साथ ऋतु काल संयोगों की विधियों को अर्थात् धरती, बीज संयोग विधियों को पहचाना और समृद्घ हुआ। इनमें पदार्थावस्था, प्राणावस्था, जीवावस्था और ज्ञानावस्था की परस्परता में और वर्तमान में विश्वास होना पाया गया।
दूसरे उदाहरण के तौर पर विविध प्रकार के मकानों को मानव ने तैयार किया। सड़क और सेतुओं को बना लिया। इनमें संयोजित सीमेन्ट लोहा के निर्माण प्रक्रिया में ईंधन संयोजन कृत्रिमता हुई। इन कृत्रिमताओं को देखने पर पता लगता है कि पदार्थावस्था (धरती) पर ही मानव का श्रम नियोजन हो पाता है। इन्हीं श्रम नियोजन के आधार पर कृत्रिमता को सृजनता के रूप में मानने के स्थान पर आ गए। इसी भ्रम के आधार पर प्रकृति पर विजय पाने की परिकल्पना तथा उमीद की गई। ये कल्पनाएँ मानव में निरर्थक सिद्ध हो गई अर्थात् यह तर्क संगत नहीं है।
(5) प्रकृति के साथ सहअस्तित्व ही समाधान है। यह मानव में होने वाली है, न कि सुविधा संग्रह में, न ही यंत्रो में :-
ऊपर कही गई सृजनता के साथ-साथ रेल मोटरों आदि यंत्रों, उपकरणों के संदर्भ में भी सामान्य रूप में ध्यान दिलाया गया। इन सभी संदर्भों को सामने में रखकर ध्यान देने पर पता लगता है कि धरती को हम गड्ढा कर सकते है, यह प्रकृति पर नियंत्रण नहीं है। हम पहाड़ को मैदान बना सकते है यह प्रकृति पर कोई विजय नहीं है। समुद्र के तल पर भी हम अपने संचार स्थापित कर सकते है, यह कोई प्रकृति पर विजय पाना नहीं हुआ। यह प्रकृति सहज मानवेत्तर प्रकृति द्वारा सहअस्तित्व की अभिव्यक्ति है, जबकि मनुष्य द्वारा इस सहअस्तित्व का निर्वाह नहीं किया जा रहा है।