भौतिकवाद
by A Nagraj
का आशय पूरा होना सहज नहीं है। अभी तक जागृत परंपरा न होने के कारण, आकस्मिक रूप में ही कोई-कोई जागृत हो पाते हैं। जिसके लिए अप्रत्याशित विधियों को अपनाना भी पड़ता है। परंपरा से, जीवन की प्रत्याशा, न्याय प्रदायिक क्षमता प्रमाणित होने के लिए दिशा, ज्ञान, दर्शन और आचरण परंपरा में प्रमाण के रूप में मिल जाए, उसके आधार पर प्रत्येक विद्यार्थी को संस्कार पूर्वक शिक्षा मिल जाए, यही मूल आवश्यकता है।
इसी के साथ सही कार्य-व्यवहार करने को प्रमाणों सहित अभ्यास संपन्न होने की संस्कार व्यवस्था, कार्य व्यवस्था सुलभ रूप में पंरपरा से सबको मिलने पर ही तथा सहअस्तित्व रूपी परम सत्य में अनुभव करने का मार्ग स्पष्ट हो जाने से ही मानव परंपरा का गौरव प्रमाणित होता है। ऐसी परंपरा को लाने के लिए, स्थापित होने के लिए, समाधानात्मक भौतिकवाद एक कड़ी है। और इस क्रम में यह तथ्य अवगाहन होना एक आवश्यकीय तत्व है कि जो जिससे बना रहता है अर्थात् जिससे रचित होता है चाहे कितनी भी बड़ी रचना हो, मूलत: जो वस्तु है वह समूची रचना उतनी ही है। जैसे - यह धरती निश्चित संख्यात्मक प्रजात्यात्मक परमाणुओं, अणुओं, कोषाओं से रचित रचनाएँ यह पूरी धरती उसी के समान ही है।