भौतिकवाद

by A Nagraj

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प्रत्येक अपारदर्शक वस्तु की परछाई स्वयं, तप्त बिम्ब का प्रतिबिम्ब, अनुबिम्ब, प्रत्यानुबिम्ब विधि से, शनैः शनैः परछाई की लबाई छोटी होती जाती है। परछाई की लंबाई जहाँ समाप्त होती है, उसकी परछाई दिखाई नहीं पड़ती है।

इस प्रकार से, प्रकाश के टेढ़ी होने की परिकल्पना की जा सकती है, जबकि सत्य ऐसा नहीं है। सत्यता यही है कि अनुबिम्ब, प्रत्यानुबिम्ब विधि से प्रकाशन, परछाई के सभी ओर निहित रहती है। विरल अणुओं पर अनुबिम्ब, प्रत्यानुंबिंब विधि से फैलने के आधार पर परछाई प्रकाश में ही छुप जाती है। ये तप्त परम बिम्ब का, प्रकाशन विधि क्रम है। कम या सामान्य ताप बिम्ब का प्रतिबिम्ब भी स्वाभाविक रूप में परस्परता में रहता ही है।

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