भौतिकवाद

by A Nagraj

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7) गुण, प्रभाव व बल

गुण की परिभाषा गण्यात्मक गति अथवा जिन गतियों की गणना की जा सकती है। जब गुण का तात्पर्य गति ही है, तब गति का ही नाम क्यों न प्रयोग में लाया जाय, गुण का नाम लेने का क्या आवश्यकता है? इसका सहज उत्तर यही है कि यह अस्तित्व सहज है। गुण शब्द से गति अवश्य इंगित होती है, परन्तु संपूर्ण की गणना नहीं होती है। गतियाँ सम, विषम, मध्यस्थ गति में समझने में मिलती हैं। सम गतियाँ विकास और गुणात्मक विकास के क्रम में प्रमाणित होती हैं। जबकि विषम गतियाँ गुणात्मक विकास के स्थान पर ह्रास घटना को स्पष्ट कर देती हैं। मध्यस्थ गति इन्हें संतुलित बनाए रखता है। अर्थात् यथास्थिति को बनाये रखने में, यथास्थिति को पोषण करने में, अक्षुण्ण बना रहता है। गुण शब्द में ये तीनों प्रकार की गतियाँ सम्बोधित हो पाती हैं। इसीलिए गुण शब्द का प्रयोग किया गया है। इस प्रकार यह स्पष्ट हो गया कि सम, विषम, मध्यस्थात्मक गति का संयुक्त नामकरण ही गुण है।

बल और गति, इस दिग्दर्शन में हैं। प्रत्येक वस्तु में बल संपन्नता का प्रमाण, अस्तित्व सहज है। सत्ता में संपृक्त होना ही बल संपन्नता का सूत्र, अस्तित्व में वर्तमान है। वर्तमान में संपूर्ण परमाणुओं का होना पाया जाता है। गति अपने में स्थानांतरण की व्याख्या है, परिवर्तन का सूत्र है। बल अपने स्थिति सहज व्याख्या है। इस प्रकार बल और शक्ति की अविभाज्य वर्तमान में ही परिभाषा और व्याख्या स्पष्ट है। यह मानव में, धरती में, परमाणु में, अनंत में घटित है। धरती में सूर्य स्थानांतरित होता हुआ देखने को मिलता है। सूर्य बिम्ब यथावत् ही दिखता है। सूर्य अपने सहज स्थिति व गति को स्पष्ट किया ही है, इसे देखा भी जा सकता है। इसलिए स्थिति और गति अविभाज्य है, इस बात को स्वीकार कर सकते हैं। बल स्थिति में और गति शक्ति में गण्य हो पाता है। बल को दबाव और शक्ति को प्रवाह के रूप में पहचाना गया है। दबाव स्थिति का तथा प्रवाह गति का द्योतक हैं। इसी के आधार पर विद्युत चुम्बकीय आदि बलों को अध्ययनगम्य और सार्वभौम रूप में देख चुके है अथवा देख सकते हैं।

बल ही गुणी के नाम से भी जाना जाता है क्योंकि गुणी और गुण की अविभाज्यता है।

1. गुण विहीन गुणी और गुणी के बिना गुण पहचानने में नहीं आता।