भौतिकवाद
by A Nagraj
स्वरुप है। अस्तु, प्रकाशन और प्रतिबिम्बन, गति या दबाव नहीं है। यद्यपि प्रत्येक वस्तु में निहित गुणों का परार्तवन होना पाया जाता है। जैसे- ऊष्मा, चुम्बकीयता, विद्युत, भार ये सब एक दूसरे पर प्रभाव डालते हैं। प्रभाव क्षेत्र भी इन्हीं का वैभव है।
इसी आधार पर ऊष्मा, चुम्बकीयता व विद्युत प्रभाव परावर्तित होती है। तप्त बिम्ब की स्वभाव गति, जो विकास क्रम के अनुसार स्पष्ट हो चुकी है। ऐसी स्थिति स्थापित होने के लिए संपूर्ण वातावरण, धरती सहित अनेक कम ताप वाले ग्रह गोल सूर्य से परावर्तित अधिक ताप को आबंटित कर लेते हैं। फलस्वरुप सूर्य का पूरकता विधि से अधिक ताप से मुक्त होने की संभावना भी बनी रहती है।
ताप मूलत: किसी इकाई के आवेश के समान होता है। कोई ग्रह-गोल में अंत: आवेश जितना अधिक होता है, उतना ही न्यून और न्यूनतम संख्यात्मक अंशों के परमाणु प्रजाति के रूप में परिवर्तित हो जाता है। इसी क्रम में परम तप्त बिम्ब के रूप में जो सूर्य है, उसमें जितनी भी वस्तुएँ है, वह सब न्यून संख्यात्मक परमाणु प्रजाति के रूप में ही अवस्थित हैं। जैसे-जैसे सूर्य ठंडा होता जायेगा, उसी में पूरक नियम के अनुसार अनेक संख्यात्मक प्रजाति के परमाणु स्थापित हो जाएँगे। इस प्रकार सूर्य में ऊष्मा का परावर्तन बिम्ब का प्रतिबिम्बन स्पष्ट हो जाता है।
(2) बिम्ब का प्रतिबिम्ब, अनुबिम्ब, प्रत्यानुबिम्ब होता है :-
हर वस्तु का प्रतिबिम्बित होना और प्रकाशित रहना, सहज सत्य है। ऐसी प्रतिबिम्बन क्रियाओं में तप्त परम बिम्ब का प्रतिबिम्बन भी होता है। उसी के साथ अनुबिम्बन, प्रत्यानुबिम्बन होता है। जिसके ऊपर जिसका प्रतिबिम्ब पड़ा रहता है, वह वस्तु भी प्रतिबिम्बित होने वाली है। इस आधार पर अनुबिम्ब विधि स्पष्ट होती है। जो कुछ भी प्रतिबिम्बित है, वह प्रत्येक, जो जो प्रतिबिम्बन है, उसके समुच्चय सहित ही उसका अनुबिम्ब, प्रति अनुबिम्ब होना पाया जाता है।
इसे ऐसा भी समझ सकते है कि किसी एक व्यक्ति के ऊपर चार व्यक्तियों का प्रतिबिम्ब पड़ा हो, उसका प्रतिबिम्बन, उन सभी प्रतिबिम्ब में समेत होता है। पहले से जिसका प्रतिबिम्ब रहा है, वे सब अनुबिम्ब में गण्य होते हैं। अनुबिम्ब जिस पर आता है, उस पर प्रतिबिम्ब भी रहता है। इसी प्रकार प्रत्यानुबिम्ब होता है। इस विधि से