भौतिकवाद

by A Nagraj

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लिए अर्थात् जानने, मानने, के लिए अस्तित्व में मानव सहज संचेतना क्रम में जीवन की सभी क्रियाओं को पहचाना जा सकता है। जिस पर विश्वास होना सहज होता है। क्योंकि सहज में ही संचेतना से जागृति तक, जागृति क्रम स्वयं में, से, के लिए स्पष्ट हो जाता है। इसका पहला सिद्घांत है। “मानव ही अस्तित्व में दृष्टा है।” दूसरी भाषा में, अस्तित्व में प्रत्येक नर-नारी समझदारी पूर्वक दृष्टा पद में ही है। इसका पहला प्रमाण प्रत्येक मानव में कल्पनाशीलता, कर्मस्वतंत्रता सहज क्रियाशीलता हैं। कल्पनाशीलता के आधार पर ही मानव अज्ञात को ज्ञात करने, अप्राप्त को प्राप्त करने आशा, विचार, इच्छाओं को अपने में ही सर्जित होता हुआ समझता है। यह अपने में, अपने से एवं अपने लिए तैयार करना होता है। यही जागृति की ओर सहज परिवर्तन का आधार बिन्दु है।

अभी इसे समझना बहुत सुलभ हो गया है कि “मानव, मानव का अध्ययन कर सकता है।” इस अध्ययन क्रम में परस्पर आधार वस्तु जागृति है। हर व्यक्ति जागृति सहज प्रमाण व उसका स्रोत हो सकता है। जागृति का स्वरुप, व्यवहार प्रमाण जानने, मानने, पहचानने, निर्वाह करने की गतिविधियों को प्रमाणित करना ही होता है। मानव अस्तित्व सहज रूप में कल्पनाशील और कर्मस्वतंत्र है। इसका निरीक्षण, परीक्षण, सर्वेक्षण स्वयं में तथा दूसरे मानव में करना और स्वयं जागृत रहने की स्थिति में सामने व्यक्ति को जागृत होने के लिए उपाय सहित बोध करा देना ही स्वयं जागृत रहने का व्यवहार रूप में प्रमाण है।

मानव में, से, के लिए जानने, पहचानने, निर्वाह करने की संपूर्ण वस्तु सत्ता में संपृक्त जड़-चैतन्य प्रकृति है और अस्तित्व सहज, सहअस्तित्व रुपी गति विधियाँ है। सहअस्तित्व रुपी गति ही सत्ता में चारों अवस्था सहज प्रकृति अविभाज्य रूप में वर्तमानित होना समझ में आता है। अस्तित्व में मानव अनुभवपूर्वक दृष्टा पद में है, सहअस्तित्व नित्य वर्तमान है, यही समझ में आने का आधार व स्रोत है।

सत्ता में संपृक्त प्रकृति में विकास, जीवन, जागृति, रासायनिक-भौतिक रचना-विरचना हर मानव में, से, के लिए अध्ययनगम्य होता हैं। इसका मूल कारण अस्तित्व में अविभाज्य वर्तमान मानव का जागृति पूर्वक दृष्टा पद में होना ही है। यही मौलिकता है। यही मुख्य बिंदु है। मानव जागृत होने की आवश्यकता को, आकार और प्रक्रिया को,