भौतिकवाद

by A Nagraj

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शून्याकर्षण पूर्वक विकास क्रम में है। यह स्वयं में एक व्यवस्था है और सौर व्यूह अथवा अंनत सौर व्यूह रुपी समग्र में भागीदार है, यह प्रत्येक मानव के सम्मुख है। मानव के दृष्टा पद में होने के फलस्वरुप इसे समझना भी सरल है। धरती की सतह का स्वरुप देखने पर समुद्र और समुद्र से घिरा हुआ भूखंड दिखाई पड़ता है, जिसमें जंगल, पहाड़, नदी-नाला स्पष्ट रूप में विद्यमान है।

इस धरती के भूखण्डों में ही, समुद्र से घिरे हुए भूखण्डों में, एक से अधिक समुदाय अपनी-अपनी परंपरा के रूप में वर्तमान में दिखते हैं। ये सब स्वयं को एक-एक भूखण्डों का अधिकारी भी मानते हैं। जबकि इस धरती की बनावट में उनका कोई श्रम नियोजन, विवेक या ज्ञान जैसी शक्ति समाहित हो, इसके किसी इतिहास की गवाही, वर्तमान में देखने को नहीं मिल रहा है। मानव का प्रश्रय, यह धरती ही है। धरती अनंत ब्रहाण्डों में से एक अंश के रूप में कार्य कर रही है। यह धरती अपने में अखण्ड है। पूर्णता इसका वैभव है। इसमें किसी भी विधि से मानव द्वारा किया गया कल्पना, खंड-विखंड कल्पना और प्रक्रिया इस धरती के वैभव के विपरीत होना पाया गया। इसकी गवाही, भ्रमित मानव का इतिहास ही है। इससे यह भी स्पष्ट हुआ कि मानव इतने दिन से भ्रमित रहते हुए भी इस धरती को विखंडित नहीं कर पाया। यह धरती विखंडित नहीं हो पाई, यह वर्तमान में गवाही है। इसी धरती में रहने वाले आदमी काल्पनिक खण्ड-विखण्ड को भी प्रभु-सत्ता की सीमा रेखा में और उसकी अक्षुण्णता में शक्ति केन्द्रित शासन के रूप में स्वीकारते हुए आए। इससे बड़ा भ्रम और क्या होगा?

दूसरा ईश्वर ही सत्तामय वस्तु का नामकरण है, इस आधार पर ईश्वर में ही प्रकृति ओतप्रोत है और ईश्वरमयता में ही क्रियाशील है तथा इसके ईश्वर सब अलग-अलग होने की कोई संभावना नहीं है। इस तरह ईश्वर व्यापक रूप में है, ईश्वर शासक या शासन नहीं हैं। यह अर्थ मानव को समझ में आता है। यह संपूर्ण प्रकृति सत्ता में संपृक्त है। पदार्थावस्था, प्राणावस्था, जीवावस्था, ज्ञानावस्था सत्ता में डूबा हुआ, भीगा हुआ, घिरा हुआ देखने को मिलता है। साथ ही, इसके पहले ही, सत्ता दिखाई पड़ता है। प्रत्येक एक भीगा हुआ की महिमा, बल-संपन्नता के रूप में प्रमाणित हो जाता है। इससे और भी एक तथ्य समझ में आता है कि सत्ता पारगामी है। इन तीनों प्रकारों से सत्तामयता को समझने वाला मानव सत्ता की (सहज) व्यापकता को, नाम के अंतर्गत लाने की कल्पना