भौतिकवाद

by A Nagraj

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हो जाता है। फलस्वरुप किसी भी कीमत में, उसको पाना चाहेगा। अधिकांश व्यक्ति इसी प्रकार के प्रपंच में फँसते हुए देखने को मिलते हैं। जैसे कभी खनिज तेल (पेट्रोल, डीजल) के अभाव की घोषणा मात्र से ही खनिज तेल के ग्राहक बढ़ जाते हैं। इसी प्रकार शक्कर के अभाव की घोषणा अर्थात् प्रचार मात्र से ही उसकी ग्राहक संख्या और उसकी आवश्यकता की तादाद बढ़ते हुए देखने को मिलती हैं। इस प्रकार कृत्रिम अभाव को तैयार करने मात्र से ही बहुत सारा लाभ पैदा करने की सवैध विधि को संविधानों ने स्वीकारा है। यह व्यापार तंत्रों में प्रचलित हैं। इस ढंग से वस्तु की कमी के आधार पर प्रतीक मूल्य बढ़ने की संभावना रखी है जबकि वस्तु से ही मानव को राहत मिलना है।

(7) व्यवस्था के लिए उन्माद अनावश्यक, मद्यपान के लिए कल्पित आधार तर्क की निरर्थकता:-

उन्मादों में से एक लाभोन्माद है, यह निश्चित हो चुका है - ऐसा माना जा रहा है। सभ्यता और शिष्टता को बनाये रखने के क्रम में, किसी प्रकार का उन्माद सहायक नहीं हो पाता। मूलत: व्यवस्था के लिए उन्माद, उपयोगी नहीं हैं। इन उन्मादों के क्रम में ही सुरापान भी एक है अथवा अधिक उन्मादित होने का उपाय है। उन्माद को आदमी मानता तो नहीं किंतु उन्मादित होने का प्रयास सदा सदा ही मानव करता ही आया है। मुख्यत: मद्यपान के संबंध में, पक्ष-विपक्ष में चर्चाएँ मानव करते ही आया है। आचरण में अधिकांश लोगों में ऐसी आदतें देखने को मिलती हैं। शराब पीने वाले आदमी में से अधिकांश लोग, जो शराब नहीं पीते उनसे विकसित सभ्यता मान लेते हैं। यह भी सुनने को मिलता है कि जो शराब नहीं पीते वे पिछड़े हुए विचार के हैं। ये आगे-पीछे विचार वाली बात, एक ऐसी स्थिति है कि बीच में कोई आधार न होने के कारण, आगे वाले को पीछे वाले को, पहचाना नहीं जा सका है। फिर भी आज की स्थिति में बहुत सारी जिंदगी महंगी शराब, चमकती हुई गाड़ी, विभिन्न प्रकार के नाच-गाने में अपने को लगाये रखते है और चमकता हुआ घर, कपड़ा इन्हीं को बेहतरीन जिंदगी कह लेते हैं। जबकि इनमें कोई बेहतरीन वस्तु रहती नहीं छुपी हुई अपराध का प्रदर्शन है। क्योंकि बेहतरीन पैमाने को पाने के लिए तीन स्रोत:-

1. अखण्ड समाज में भागीदारी,