भौतिकवाद
by A Nagraj
(2) “मानव संचेतना सहज आहार पद्घतिपूर्वक जीने की कला” :-
उक्त तथ्यों को उपयोगी, सदुपयोगी, प्रयोजनशील बनाने के क्रम में केवल मानव ही अपनी कल्पनाशीलता, कर्म-स्वतंत्रता, विचारशीलता और जागृति पूर्वक अखण्ड समाज उसकी निरंतरता, सार्वभौम व्यवस्था उसकी अक्षुण्णता को ध्यान में रखते हुए इस धरती पर जीने की कला को प्रगट कर पाना आवश्यकता है। इस पर विचार सहित पद्घति, प्रणाली, नीतियों का अध्ययन संभव हो गया है। इसे सहज सर्व सुलभ बना देना ही अपना संकल्प है।
(3) विभिन्न आहार पेय पद्घति :-
मानव इतिहास में, समुदायों का अध्ययन करने पर आहार मानसिकता के साथ पेय मानसिकता भी मुद्दा रहा है। इसको क्यूं ना कहें कि मांसाहार-मद्यपान, शाकाहार-दुग्धपान है। आहार और पेय का नजदीक का संबंध रहा है। मानव के आहार, खान पान के साधन पर ही, देवी-देवताओं को समर्पित वस्तुओं से तृप्त होने की बात सोचे थे। इस क्रम में देवी-देवताओं के प्रसन्न होने की बात को स्वीकारा जाता है, उसी प्रकार रुष्ट होना भी स्वीकारा जाता है। इन्हीं दो विधियों से देवी-देवताओं की महिमा को गाया जाता है। यह आज भी प्रचलित है। इसका तात्पर्य है कि जो आदर्शवादी गतिविधियों में अपनी आजीविका को वैध मानते है वह सब इसी प्रकार की महिमा को बताया करते हैं।
(4) संग्रह विश्वासघात पूर्वक :-
जो आदमी आदर्शवादी गतिविधियों को नकार दिया है, वह युक्तियों सहित ताकत के प्रयोग से संचय होना मानते हैं। कुछ लोगों का यह भी मानना है कि छल, कपट, दंभ, पाखंड सहित शोषण करने में जो जितना अत्याधुनिक होता है, वह ज्यादा से ज्यादा, संचय करने में सफल होता है। इसका उदाहरण आज की स्थिति में देखा भी जाता है कि सफल राजनेता वही कहलाता है जो संसार को “कड़ी मेहनत-ईमानदारी का पाठ” पढ़ाते है, अपने धन संचय को विदेशों में, सुरक्षित स्थानों पर छुपा कर रखते हैं। दूसरा, शनै:शनै: यह भी देखने को मिल रहा है कि क्रमश: इनकी संख्या बढ़ रही है कि संसार को त्याग और वैराग्य का पाठ पढ़ाओ और अपने धन संचय राशि को राष्ट्रीयकृत बैकों में सुरक्षित कर रखो। यह प्रधानत: धर्म नेताओं में देखने को मिल रहा है। व्यपाारी