भौतिकवाद
by A Nagraj
और उद्योगपति, अधिकारी, कर्मचारी ये सब धन संचय करते ही है और करने के इच्छुक रहते ही हैं। किसी कारणवश, इनमें से किसी को धन संचय न होने की स्थिति में अफसोस मानते हैं। इस प्रकार ये सब चीजें देखने के उपरान्त यही निष्कर्ष के लिए आंकलन बना कि विश्वासघात रुपी छल, कपट, दंभ, पाखंड पूर्वक किया गया शोषण सर्वाधिक संग्रह का तथा धन संचय का उत्तम माध्यम बना।
(5) संचय प्रेरणा और विफलता :-
संचय सदा ही द्रोह और शोषण विधि से संपन्न होता है। सामान्य जनमानस के लिए राज नेता और धर्म नेता, उद्योगपति और व्यापारी आदर्श रूप में होना पाया जाता है। ये सब अर्थात् उक्त कहें चारों तबके के लोग जब संग्रह कार्य में लग चुके है, तब सामान्य व्यक्ति में भी संग्रह का उद्देश्य और प्रयास स्वाभाविक रूप में होना पाया जाता है। इस प्रकार सभी व्यक्ति जब संचय के लिए प्रयत्न करते है, तब संचय का स्रोत कैसे पूरा हो पाएगा। संचय कहाँ तक हो, वह भी कहीं निश्चित तृप्ति बिंदु के रूप में अभी तक नहीं हैं। इससे यह संभावना भी स्पष्ट हो गई कि संचय का अथवा उसकी मात्रा का कोई अंतिम बिंदु नहीं है।
(6) संचय किसका, कैसे? कृत्रिम अभाव, मूल्य वृद्घि-वस्तु की आवश्यकता का प्रतिपादन :-
यह धरती ही संपूर्ण वस्तु का स्रोत है। यह धरती बनी रहे तभी मानव रह पायेगा। धरती में संचय जो कुछ भी है, वह खनिज और वनस्पति है तथा जो कुछ भी आहार वस्तुओं के रूप में पैदा किये जाते है, सभी रासायनिक द्रव्य हैं। यही कुल मिलाकर संचय का आधार है। इन वस्तुओं का गोदामों में भण्डारण किया जाता है। कोषों में इन वस्तुओं को जमा नहीं किया जा सकता। इनकी प्रतीक मुद्रा है यह मान्यता प्राप्त है। ऐसी प्रतीक मुद्राओं को कोई भी मानव कोषों में सुरिक्षत कर सकता है। अंततोगत्वा ऊपर कहे गए तरीके से मुद्रा को जब कभी भी आदमी भोगेगा वस्तु में परिणित करके ही भोगेगा। वस्तुएँ (खनिज, वनस्पतियाँ) कम होती जा रही है। एक दिन सर्वाधिक कम होने के बाद वही वस्तुएँ बहुमूल्य हो जावेंगी, यह स्वाभाविक है। मानव के भोगोन्माद के अनुसार, कोई भी वस्तु जब कम हो जाती है, उसके लिए आदमी की आवश्यकता का पलड़ा भारी