भौतिकवाद
by A Nagraj
(9) आसव की दो विधियाँ: शराब का जो आसवन व आसवीकरण है, इससे कार्य-व्यवहार प्रभावित होता है- यह (नशा) व्यवस्था सम्मत नहीं है :-
आदमी नशा करके शांत बैठा है इसमें क्या अतंर है? इसका सटीक विश्लेषण करने के लिए आज की स्थिति बड़ी अनुकूल है। दूध और शराब को, उनमें समाहित वस्तुओं के आधार पर स्पष्ट होता है। मद्य, एक किसी मीठा वस्तु को सड़ाने के उपरान्त आसवन क्रिया से प्राप्त वस्तु है। आसव निर्माण की दूसरी विधि में किसी भी मीठी वस्तु को इसको अपने में, से, के लिए आसव के लिए बाध्य किये जाने पर उसमें मूल द्रव्य को पूर्णतया विकृत होने से बचाने के लिए अनुपाती विधि से, मद्य स्वयं से तैयार कर लेता है। मूल द्रव्य मद्य से संरक्षित रहता है। अत: यह औषधि के लिए उपयुक्त है।
पहली विधि से प्राप्त मद्य स्वाभाविक रूप में उन्माद को बढ़ाता है। इसलिए यह व्यवस्था में भागीदारी होने में अड़चन पैदा करता है, यह स्पष्ट है। शांत बैठे रहने का तात्पर्य, कुछ न करते हुए बनता है, कुछ न बोलते हुए भी बनता है, इसलिए शराब पिया हुआ व्यक्ति विचारशील नहीं हो ऐसा नहीं है। विचारशील रहता ही है, इसलिए विचारों में नशा का, शराब का असर रहता है। जब-जब कोई कार्य होगा, तब तब उसका प्रमाण होता ही है। अस्तु, व्यवस्था में भागीदारी पूर्वक, मानवीयता पूर्ण आचरण को व्यक्त करने के लिए सभी प्रकार का नशा बाधक है। कोई भी नशा इसमें सहायक नहीं है।
(10) दूध क्या है? जीवंत शरीर में निष्पन्न ममता सम्मत प्रेरित रस है :-
अब दूध के स्वरुप को देखें। जो शुद्घत: वनस्पतियों को सेवन करते है, अनाज का सेवन करते है, उनके शरीर में जो रस बनता है, वह ममता सम्मत विधि से निष्पन्न होने पर अर्थात् बहिर्गत होने से दूध कहलाता है। दूध के लिए ममता और प्यार समाया रहना अति आवश्यक रहता ही है, अन्यथा दूध होता ही नहीं। यह प्रक्रिया इस प्रकार से चिन्हित रूप से शरीर गत रस ही है। विविध प्रकार से रसों का बर्हिगत होना पाया जाता है। उनमें से एक विधि दूध है। शरीर की आवश्यकता से अधिक रस दूध बनकर या मूत्र बनकर चले जाय या खून बने शरीर के लिए उपयोगी हो। यही सब शरीर तंत्र में बनी हुई व्यवस्था है। गाय जैसे अन्य पशुओं से जिनमें दूध लेना है, उससे (गाय) निश्चित आयु के पश्चात् दूध की अपेक्षा स्वाभाविक होती है। उसमें जो प्रक्रिया होना है, वह सब आरंभ