भौतिकवाद

by A Nagraj

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होकर दूध देने योग्य गाय हो जाती है। इसमें यह भी देखा गया है कि दूध न निकले तो बहुत बड़ी गाय- जैसे चार फुट वाली आठ फुट की हो गई हो, या पाँच फुट वाली दस फुटवाली हो गई हो; दो क्विन्टल वाली गाय पचास क्विंटल की हो गई हो; ऐसा कुछ होता नहीं । जैसे मानव में मल मूत्र सब बंद कर देने से इनका वजन बढ़ जाता हो, मोटाई बढ़ जाती हो, ऊँचाई बढ़ जाती हो, ऐसा कुछ नहीं है। मानव में कल्पनाशीलता है, इसलिए उसे दौड़ाता है। अंततोगत्वा यथार्थ को स्वीकार करना पड़ता है और आदमी स्वीकारता है। यह जागृति का क्रम भी है। मुख्य बात दूध में और मद्य में फर्क यही है कि मीठी वस्तु विकृत होकर मद्य बन जाता है और दूध जीवन सहज स्नेह, प्यार, ममता से प्रेरित रस निष्पत्ति है। दोनों में फर्क मानव को समझ में आने वाले मुद्दा यही है।

(11) “मांसाहार, भ्रूण विहीन अंडा भक्षण, जागृत मानव सहज नहीं है” :-

मांसाहार, शाकाहार का स्पष्ट रूप से विश्लेषण पहले हो चुका है। शाकाहार मूलत: वनस्पतियों से प्राप्त वस्तु है। मांसाहार, जीव शरीर अथवा मानव शरीर से प्राप्त वस्तु है। मांस का स्रोत अण्डज-पिण्डज परंपरा ही है। शाकाहार का दृष्ट स्रोत बीज-वृक्ष परंपरा सहज है। मांसाहार के क्रम में, कुछ और भी बातें जोड़ लेते है वह है मुर्गीपालन, मुर्गी का अंडा। इन अंडों में मुर्गी पैदा होने वाला, न होने वाला - दो प्रकार के हैं। इस में तर्क यह है कि अंडे से मुर्गी पैदा होती नहीं है, इसलिए यह मांसाहार में शामिल नहीं है। इस बात को ध्यान में लाना इसलिए आवश्यक है कि जो पहले से ही स्पष्ट है कि मांसाहार, शाकाहार इनके बीच की सभी प्रकार की वस्तुएँ विकृत अथवा स्वेदज विधि में आती हैं। भ्रूण विहीन अंडे के संबंध में जो बात सोची जाती है कि भ्रूण विहीन अंडे को पैदा करने में सफल हुए है परन्तु ये सब स्वेदज प्रजाति की गणना में आते हैं। पहले भी इस बात का जिक्र कर चुके है पशुओं के मरने के बाद खाने में क्या गलती है -इस प्रकार मांसाहार में मौन सहमति है। जो मरे हुए अंडे को खाते है। यह मरा हुआ इसलिए है कि इसमें भ्रूण नहीं हैं।

3) मानव की मौलिकता