भौतिकवाद
by A Nagraj
इससे यह पता चला कि प्रत्येक ऐसा शरीर जिसमें समृद्घ मेधस की रचना हो चुकी है और विभिन्न रस संयोग विधि से ही रक्त के रूप में परिवर्तित होता है, ऐसा तंत्र शरीर में रचित हो चुका है। ऐसे शरीर में ही मांस-मज्जा आदि वस्तुएँ देखने में आता है। ऐसे ही शरीर को जीवन संचालित कर जीने की आशा को जीव शरीरों में ही प्रमाणित करता है, जबकि मानव शरीर में आशा, विचार, इच्छा, संकल्प और प्रामाणिकता को प्रमाणित करता है, इसीलिए जीवन की अभिव्यक्ति के लिए हर जीव परंपरा में उन-उन शरीरों का होना एक सहज प्रक्रिया है। इसमें बल पूर्वक हस्तक्षेप कर, दुर्बल को सबल भक्षण करें, यही मांसाहार का तात्पर्य हुआ, जो विनियोजन के प्रकाश में स्वीकार्य नहीं है। शरीर का बल, तकनीकी संपन्न यांत्रिकी की रोशनी में, कैसा बौना हो जाता है, इस बात का स्पष्टीकरण जिसने पहली बार बंदूक से सिंह जैसे क्रूर जानवरों को मार गिराया था उसी दिन पता चल चुका था। आज के और भी अत्याधुनिक, मार्मिक, अत्यधिक मारक प्रभाव अर्थात् मारने वाले प्रभाव को रखने वाले बहुत सारे उपायों को मानव ने पा लिया है। इसमें किरण, विकिरण प्रणालियों को भी उपयोग करने की जगह में, समुन्नत तकनीकी द्वारा मानव लैस हो चुका है। इस प्रकार शरीर बल प्रभावशाली न रहकर, तकनीकी बल सर्वाधिक प्रभावशाली हो गया है। उल्लेखनीय तथ्य यही है कि जीवन ही तकनीकी का उद् गाता है। अस्तु, मानव अब ठंडे दिमाग से सोचने के लिए बाध्य हो गया है।
यह बहुत आसान हो गया है कि मानव जीवन को पहचान सकता है । जीवन विद्या इसके लिए है। जीवन सहज समानता को प्रत्येक मानव में समझा जा सकता है। इसके लिए अध्ययन सहज विकल्प, “परमाणु में विकास और जीवन ज्ञान” है। इन दोनों ऐश्वर्य से संपन्न होने के उपरान्त ईश्वर, देवता आत्मा जैसे रहस्यों से मुक्ति पाने का क्रम अस्तित्व दर्शन से बनता है और स्पष्ट होता है कि मानव ही विकसित और जागृत होकर देवी-देवताओं के पद में हो जाते हैं। ये सब अस्तित्व सहज अभिव्यक्ति क्रम में हैं। इसलिए मानव का इसको जागृति क्रम अथवा जागृति पूर्वक स्वीकारना सहज है। मानव कुल जागृत है इस बात का प्रमाण अखण्ड समाज, सार्वभौम व्यवस्था ही है। इसमें भागीदारी के लिए जीवन ज्ञान, अस्तित्व दर्शन ज्ञान, मानवीयतापूर्ण आचरण ज्ञान सहज परंपरा ही एक मात्र विकल्प है। इस नजरिए से किसी जीवन के अधिकारों को, स्वत्व को, स्वतंत्रता को हनन करना अव्यवस्था का द्योतक होता है। इसलिए जानवरों और मानवों का वध अव्यवस्था का द्योतक सिद्घ हुआ है। नियम-नियंत्रण