भौतिकवाद

by A Nagraj

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अन्न-वनस्पतियों का विहित विधि से नियोजन का तात्पर्य है, पदार्थावस्था के लिए पूरक होना। पदार्थावस्था, प्राणावस्था के लिए पूरक होना जबकि जीवावस्था और ज्ञानावस्था में शरीर रचना का विनियोजन, जीवन के लिए पूरक होना है और जीवन का शरीर के लिए पूरक होना जीवन्तता सहज विधि से स्पष्ट है। यही मुख्य तत्व है। शरीर रचनाओं और वनस्पति रचनाओं में मुख्य विनियोजन विधि भिन्न हैं। यह भिन्नता अवस्थाओं को परिभाषित करने, व्याख्यायित करने, वर्तमान में प्रकाशित करने के आधार पर स्पष्ट हुई हैं। अस्तित्व का अपने में, चारों अवस्थाओं में प्रमाणित होना, इस धरती पर प्रमाणित हो चुका है। इन चारों अवस्थाओं मे स्पष्ट है। दृष्टा, दृश्य, दर्शन का प्रमाणित होना एक आवश्यकीय तत्व रहा है। इसी क्रम में जीवावस्था के अनंतर ज्ञानावस्था की अभिव्यक्ति सहज रूप में हुई है। इन तमाम अभिव्यक्तियों में अस्तित्व सहज नियम, प्रक्रिया-वस्तु द्रव्य ही हैं।

मानव का जब से जंगल, पत्थर, धातु, जलवायु और मिट्टी पर हस्तक्षेप होता आया यह अपनी बहादुरी की दुहाई देते रहा। इस बीच मानव के साथ मानव का पाला पड़ा। फलस्वरुप विविध समुदायों के रूप में बँटा हुआ आदमी आज की तिथि में व्यक्त हैं। इस क्रम में अर्थात् इस भ्रमित क्रम में मानव मांसाहार में लटका हुआ है। मांसाहार में सबसे स्वादिष्ट मानव शरीर को होना बताया करते हैं। इस प्रकार मानव भी मांसाहार की इकाई होने के पश्चात् मानव को मांसाहार के रूप में स्वीकार लिया। यदि ऐसे ही प्रत्येक मानव में मानसिकता बन जाये, उसके लिए भी मानव को ही प्रयत्न करना पड़ेगा। मानव, मानव को जब मांसाहार का आधार बना देगा तब मांसाहार करने वाला अलग से कैसा पहचाना जाय, यह प्रश्न उभर आता है? उस स्थिति में जो सबसे बलवान होगा वह अधिक लोगों को खाएगा। अब बलवान होने की होड़ चली। यह मल्ल युद्घ वाली बात, शिलायुग तक भी तैयार हो चुकी थी। अभी की स्थिति में तकनीकी बल ज्यादा ताकतवर हुई। भीमकाय व्यक्ति को एक दुबला पतला आदमी गोली मारे, भीमकाय व्यक्ति मर जाएगा। इस प्रकार बल के आधार पर मानव को मांसाहार का आधार बनाना संभव नहीं हो पाता। इसी के साथ बलवान वाली बात, दुष्टता के साथ, पशुता के साथ, परेशानी का घर होना सिद्घ हो गया और परेशानियों को मानव वरता नहीं है । इस स्थिति में पुन: विचार करने के लिए आवश्यकता का अनुभव करता है। जब बल के आधार पर मांसाहार विधि मानव कुल के लिए व्यवस्था का आधार नहीं हुई