भौतिकवाद

by A Nagraj

Back to Books
Page 133

इस धरती में अभी तक, भ्रमित रहने की घटनाओं को उन उन आयामों के इतिहास के आधार पर पहले से स्पष्ट किया जा चुका है। शरीर को ही जीवन, जैसा सभी जीव स्वीकारे रहते है और उनके कर्म करने और फल भोगने के क्रम में यांत्रिक होने के कारण संपूर्ण जीवों का नियंत्रित रहना पाया जा रहा है। वहीं मानव अपने में कर्म करते समय में स्वंतत्र है, फलस्वरुप स्वस्फूर्त विधि से नियंत्रित, व्यवस्थित रहने की आवश्यकता तथा अवसर रहते हुए अभी तक वह नियंत्रित नहीं हो पाया। कल्पनाशीलता, कर्मस्वतंत्रता जैसी अद्भुत महिमा का मूल्यांकन नहीं हो पाया। कर्मस्वतंत्रता वश जीवन सहज शक्तियों आशा, विचार, इच्छाओं को आदि काल से मानव भ्रमवश दुरुपयोग करते आया।

फलस्वरुप इस बीसवीं शताब्दी के अंतिम दशक तक इसके सदुपयोग विधि को शिक्षा में, प्रयोजन विधि को पहचाना नहीं गया। व्यवहार शास्त्र में इसकी सदुपयोग विधि पहचानने में नहीं आई, संविधानों में इसकी संरक्षण विधि समझ में नहीं आई, मूल्यांकन में विधि समझ में नहीं आई। इन्हीं गवाहियों के आधार पर मानव परंपरा भ्रमित रहना स्पष्ट है। हर मोड़, मुद्दे पर विश्वासघात से ही दुकानें सजीं। इसकी भी गवाही वर्तमान ही हैं। जैसे राजगद्दियाँ, धर्म गद्दियाँ आश्वासन देते है, व्यापारवाद जैसा आश्वासन देता है, वैसा व्यवहार में प्रमाणित होना अभी भी प्रतीक्षित रह गया है। इससे यह पता लगता है कि आदि मानव से अभी तक जो कुछ भी अंतरण हुआ, वह वस्तुओं की संग्रह सुविधा विधि और उसकी तादाद की सीमा में ही आज भी मानव मूल्यांकित है । सर्वाधिक संख्या में सभी मानव इसी संग्रह सुविधा के चौखट में दिखाई पड़ते हैं। कोई कोई अपवाद रूप ही हो सकते हैं। और भी एक स्मरण आवश्यक है कि आदि काल से मानवों में छोटे-छोटे समुदाय परंपरा होना पाया जाता है, जिसमें अधिकतर अविश्वास रहा है। किसी देश काल में विश्वास व्यक्त करने वाले कुछ संख्या में मिलेंगे और सर्वाधिक संख्या में क्षणिक विश्वास के आधार पर सांस लेते हुए आदमी को देखा जा सकता है। इस प्रकार वर्तमान में विश्वास संपन्न व्यक्ति न्यूनतम हैं। अधिकतम वर्तमान में प्रताड़ित व्यक्ति हैं। इसको इन स्वरुपों में जाँचा जा सकता है :-

1. आदि मानव जैसा अभी भी अविश्वास पनप रहा है?

2. आदि मानव से अभी विश्वास अधिक हो रहा है?

3. आदि मानव से अभी अविश्वास बढ़ गया है?