भौतिकवाद
by A Nagraj
जिम्मेदारी से होना है। अभी तक कोई शक्ति केन्द्रित शासन ऐसा देखने को नहीं मिला, जिसमें मानव का अध्ययन संपन्न शिक्षा और व्यवस्था में संरक्षण विधि को लोकगम्य कराने में कोई मार्गदर्शन किया हो। इसका कोई प्रमाण इतिहास में तथा वर्तमान में देखने और समझने को नहीं मिला।
शक्ति केन्द्रित शासन और विकेंद्रीकरण की बात बारबार सुनने में आई। एकाधिकारवादी राजगद्दी के समय भी इस प्रकार की बातें आईं एक से अधिक व्यक्तियों के साथ मिलकर निर्णय लेने पर सत्ता सहज अधिकारों का आबंटन मौखिक, लिखित रूप में हुआ। डराने, धमकाने, मारपीट करने के अधिकारों को आबंटित करने की प्रथा चली। ऐसे सभी काम आम आदमी के साथ ही करना था और आज तक इसे करते आए। वर्तमान में भी यही कर रहा है। कहीं बड़ी तादाद से ऐसे कर्मो को करना है, जैसे सीमा सुरक्षा और युद्घ की तैयारियाँ। यही आज तक देखा गया है। इसे सत्ता विकेन्द्रीकरण का रूप भी मान लिया गया है।
इसके बाद गणतांत्रिक तरीके से जनादेश जैसी अद्भुत शक्ति के साथ गद्दी में बैठने की प्रथा आरंभ हुई। पहले से ही सत्ता का स्वरुप छोटे-बड़े सभी देशों के साथ यह बना हुआ है। इन जन प्रतिनिधियों के आदेशों को पालन करने के लिए संविधान सहज अनुमति बनी रहती हैं। जहाँ-जहाँ गणतांत्रिक प्रणाली प्रभावशील हुई है, वहाँ-वहाँ लिखित संविधान का होना पाया गया है। गणतांत्रिक शासन विधान में जनमानस का ख्याल रखा जाता है। ऐसे प्रचारों का खास तौर पर ख्याल रखते हुए इसे प्रचारित किया जाता है।
मुद्रा :- गणतांत्रिकता के लिए सांस्कृतिक आधार, आर्थिक आधार, राजनैतिक आधार मुद्रा को माना गया है। राजनैतिक लक्ष्य सत्ता हस्तांतरित करना है। सांस्कृतिक आधार की पहचान पहनावा (कैसा कपड़ा पहनते है) श्रृंगार, नृत्य, शादी ब्याह के तरीके को माना गया। इसकी विविधताओं को वैध मान लिया गया है। जैसे, सर्वाधिक आय, कम आय अथवा सर्वाधिक संग्रह (पूंजी) पैसा, कम से कम पूंजी पैसा। पूंजी का स्वरुप मुद्रा है। मुद्रा का मूल रूप एक कागज है । कागज का मूल रूप बाँस लकड़ी ही हैं। इसका तात्पर्य यह हुआ है कि बाँस लकड़ी के ऊपर मानव कुछ लिखता है, उसका नाम मुद्रा है। मुझे लिखने वाले का दिल दरिया जैसा दिखता है। किसी कागज के टुकड़े पर सौ, किसी पर