भौतिकवाद
by A Nagraj
ओर वही कोष प्रकारान्तर से विश्व बैंक कहलाने वाले स्थल के ऋण के रूप में उन्हीं देशों को सर्वाधिक आबंटित होगा। मजबूत कोष वाले देशों की शर्तों को मानते है, न मानने की स्थिति में विश्व बैंक अथवा विश्व कोष से उन लोगों को ऋण नहीं मिल सकता, जब तक उनकी शर्तों को ये पूरा नहीं करते हैं। इस प्रकार, उसी के साथ भय का स्वरुप, अपने आप विश्व के सम्मुख प्रस्तुत हो चुका।
उल्लेखनीय बात यह है कि कुछ गणतांत्रिक देश आर्थिक, सामाजिक और राजनैतिक समानता के अधिकार की घोषणा करते है अथवा आश्वासन देते हैं। दूसरी और संवैधानिक रूप में सभी संस्कृतियों की रक्षा करनी हैं। फलस्वरुप सांस्कृतिक समानता खटाई में चली जाती है। आर्थिक विषमता को दूर करने की परिकल्पना संविधानों में है। जिन देशों में, जिनके पास अधिक पैसा है, उसके दुगने के लिए वह प्रत्यनशील है। जिस दिन वह पैसा दुगुना होता है, उसी क्षण से उसके दुगने के लिए प्रयास करता है। आज की स्थिति में मान लो एक व्यक्ति के पास एक करोड़ है, दूसरे के पास एक रुपया है। एक रुपये वाला अपने एक रुपये को दुगुना करने चलता हैं। उससें भी समय लगता है। उसी प्रकार एक करोड़ रुपये वाला अपने धन को दुगुना करने जाता है, उसमें भी समय लगता है। करोड़ रुपये वाला आदमी रुपया दूगुना करने में सफल होता है, कुछ असफल होता है। एक वाला भी ऐसे ही सफल अथवा असफल होता है। समय के बारे में भी ऐसा ही सोचा जा सकता है और देखा जा सकता है। एक रुपये वाले आदमी दो रुपया कर लेता है। मान लो कि इसमें उसे दो माह लगा। उसी भाँति एक करोड़ वाला दो करोड़ जल्दी बना लेगा। उनको भी एक महीने लगा। जल्दी वाले क्रम को रखते हुए इन दोनों के समीप बिन्दु क्या है। देखा जा सकता है- इस प्रश्न का उत्तर सामान्य मानव के लिए अगम्य हो गया है और गणित भी व्यर्थ चला गया है। इसी भाँति अमीर देश, गरीब देशों के साथ भी है। इसमें सार्थकता क्या है? यह पूछा जाये। गरीब देशों में सार्थकता केवल उस देश की गद्दी में बैठा हुआ कुछ लोगों के हाथों में, गरीबों के अनुसार अनगिनत गणित के अनुसार अरबों रुपयों को देखा जा सकता है। अमीर देशों का क्या फायदा है, अमीर देशों का फायदा यह है कि सभी देशों की सारी वस्तुओं को सस्ते में लाकर अपने देशवासियों को आवश्यकतानुसार उपलब्ध करावेंगे। अपने देश की सारी वस्तुओं को, वन खनिजों को बचाए रखेंगे। सभी देशों के वन खनिज समाप्त होने के पश्चात्