भौतिकवाद
by A Nagraj
स्थिति बनती है, तब देश की अखण्डता अथवा सीमा सुरक्षा के प्रति लोग प्रतिबद्घ हो जाते है। इस प्रकार की घटनाओं को इस धरती पर मानव कई बार दुहरा चुका है । अब सत्ता परिवर्तन, सत्ता विकेन्द्रीकरण और सत्ता हस्तांतरित होने वाली बात, हर धर्मगद्दी व राजगद्दी में बारंबार सत्ता हस्तान्तरण के साथ परिवर्तन और परिवर्तन के साथ विकेन्द्रीकरण, विकेन्द्रीकरण के साथ हस्तांतरण होता ही रहा है।
इतिहास के अनुसार इस घटना के स्वरुप को, विभिन्न रुपों में देखा गया है-
1. सत्ता में बैठे हुए आदमी को बल पूर्वक हटा दिया गया और दूसरा बैठ गया। इसमें विश्वासघात के विविध विन्यासों को देखा गया। जनमानस के न चाहते हुए- छल, कपट, विश्वासघात पूर्वक हटा दिया गया और दूसरा बैठ गया।
2. विश्वासघात के ही स्वरुप में दंभ, पाखंड पूर्वक जन-मन चाहे आश्वासनों के आधार पर गद्दी में बैठे हुए आदमी को हटा दिया है।
3. वंशानुगत अधिकार के अंतर्गत गद्दी पर बैठ गया। ऐसा सर्वाधिक घटनाओं में गद्दी पर बैठा हुआ आदमी मरने लगा है, मरने की तैयारी में है अथवा मर गया है। ऐसी स्थिति में वंशानुगत विधि से, गद्दी में बैठने की घटनाओं को देखा गया।
4. गद्दी पर बैठा हुआ आदमी स्व प्रसनन्ता से दूसरे व्यक्ति को बैठाया।
इतिहास के अनुसार ऐसे, विविध घटना क्रम स्मरण करने के लिए उपलब्ध हैं। इन्हीं चार विधियों से सत्ता को हस्तांतरित होते हुए देखा गया है और सत्ता हस्तांतरित हुई है । सत्ता प्राप्त व्यक्ति जो गद्दी में बैठा रहता है, उसका मूल रूप, मूल महिमा मूलत: विकरालता और सर्वाधिक सुविधा, यही रहते आया। शक्ति केन्द्रित शासन करने को सर्वाधिकार अथवा एकाधिकार से चली आई है।
शक्ति केन्द्रित शासन का तात्पर्य यही माना गया है कि संविधान लिखित या मौखिक, इन दोनों विधियों से पालन होना राज्य का तात्पर्य है, अर्थात् वैभव का तात्पर्य है। राज्य सत्ता का तात्पर्य यही है कि पालन न होने की स्थिति में उसे डंडा, बंदूक, तोप, प्रेक्षपण-विक्षेपण वध-विध्वंसात्मक कार्य करने का अधिकार हो। ऐसा मौलिक अधिकार गद्दी में बैठे हुए आदमी के पास होना या आदमी में होना मान लिया जाता है। इन्हीं से आबंटित पद अथवा नाम के रूप में होना परंपरा में देखा गया। उनके लिए प्रदत्त, सत्ता सहज अधिकार का तात्पर्य भी यही हैं। लोक जीवन, लोक कार्य, लोक व्यवहार अपनी